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यह सुनि सकल सराहि नृपति निस्पृह कामनि काँ। "एवमस्तु" कहि चले मुदित निज निज धामनि काँ॥ नभ 6 वरसे सुमन वजी आनंद-वधाई । उमग्यौ मेोद अनंत दिगंतनि जय-धुनि छाई ॥ ४० ॥ इमिभूप-सुकृत-राकेस-द्युति गंग सकल कलमस हरयौ। बर-बानी-विमल-विलास बढ़ि रतनाकर-उरसंचरचौ ॥ ४१॥