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याँ कहि जथा-प्रसंग कथा संछेप बखानी। कहत सुनत दुहुँ गनि सोक-सरिता उमगानी ॥ अंसुमान सुनि समाचार सब अति दुख पाग्यौ । लखि लखि छार पछार खाइ बिलपन लुठि लाग्यौ ॥१५॥ हाय तात यह भयौ घात बिन बात तिहारौ । होम करत कर जरयौ परचौं बिधि बाम हमारी॥ आए बाजी लेन बेचि बाजी इमि सोवत । उठत क्यों न पितु लखत बाट उत इत सिसु रोवत ॥ १६ ॥ सके न देखि उदास कबहुँ तुम बदन हमारौ । बिलकत आज बिलोकि क्यों न कर गहि बुलकारौ ॥ खेलन खोरि न दियौ हमैं तुम धूर-धुरेटे। सो अब आपुहि अाइ छार-रासिनि मैं लेटे ॥१७॥ पठयौ हमैं भुवाल तात सुधि लेन तिहारी। कहैं कहा संवाद जाइ हम मर्म-बिदारी ॥ सुनतहिँ ताकी कौन दसा दारुन है जैहै । सुमति केसिनी को बिषाद-मरजाद नसैहै ॥ १८ ॥ सुनि यह विषम बिलाप ताप खग-पति अति पायौ । कहि अनेक इतिहास ताहि बहु बिधि समुझायौ ।। धीर बीर इक्ष्वाकु-बंस को बिरद उचारयौं । छत्रिनि को सुभ परम धरम धीरज निरधारयौ ॥ १९ ॥