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गरुए गोल सुडौल पोन ब्रन-हीन असीले । पारस खाड़ी के प्रवाल अति लाल लसीले ।। मंगल बरन बिसाल बिसद मगल-दुखहारी । दरन अमंगल मूल महा-मुद-मंगलकारी ॥१६॥ चिक्कन चिनकी चारु चटक रंग रोचक धानी । छूट सहित गुरु स्निग्ध मंजु मर कल मुलतानी ।। चीनी चारु अमाल अमीचंदी ध्वज-धारन । बुध-गृह-बाधा-बधन विविध विषधर-बिष-बारन ॥९७।। पुष्पराम पृथु स्निग्ध स्वच्छ गुरु समघटवारे । कनिकार - कल - कुसुम - कांति -कोमल - किरनारे। जानि बिंध्य गुरु-भक्त खानि-संभूत सुहाए । जिनसाँ रहत प्रसन्न सदा सुरगुरु सुख-पाए ॥९८॥ कुलिस एक-रस रुचिर ओज सो द्विगुनित दरसत । तिहूँ जाति चहुँ बरन इंद्रधनु पंचरंग परसत ॥ सुभ छकोन सप्ताका-प्रभा-पूरित सुखदायक। अष्ट फलक सौ फवित नवा रत्ननि के नायक ॥९१।। बिसद बारितर तरल तड़य तीखे त्यौनारे। मसून मंजु स्फुट स्निग्ध स्वच्छ अति कठिन करारे ।। असुर - अस्थि - संभूत असुर - गुरु - कृपाधिकारी। पन्ना पुहुमि गोलकुंडा के गौरवकारी ॥१०॥