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सँवारे। देस काल उपयोग जोग सब रुचिर रंगाए । लता सुमन पसु पच्छि, चित्र सौं चारु चिताए । सब सुविधा का सोधि सजे सब सुघर सुहाए। विविध भाँति बहु मूल्य साज सौँ अति मन भाए ॥७६॥ झाड़ कमल कल बिमल चारु चित्रित बहुरंगी। विसद बैठकी बृच्छ स्वच्छ मंजुल मिरदंगी॥ सुर नर मुनि के चारु चित्र चख आनंद-दाई। फूलदान चंगेर महक जिन सौं उठि छाई ॥७७॥ पंचरंग परदे पटापटी के पाट चारु चीन की चिकै चित्र जिन पर अति प्यारे ॥ धीर-फेन सम स्वच्छ बिछायत अच्छ बिचाई। परम नरम गादी मखमल की ललित लगाई ॥७८॥ गिलिम गलीचे कल कालीन पीन पारस के। सुघर सोजनी नव नमदा हरता भारत के ॥ छोटे बड़े बड़े उसीस घरे दस-बीस सँवारे । जिनपैं उठकत होत चैन लहि नैन धुमारे ॥७२॥ करत सुगंधित सदन अगर बाती कहुँ साहे। कहुँ फूलनि की ललित लरै लटकत मन मोह ॥ कहुँ स्यामा कहुँ अगिल कोकिला कहुँ कल गावैं । कहु चकोर कहुँ कीर सारिका सब्द सुनावैं ॥८॥