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कहिहै सब संसार हमै अब हाय पातकी। सहिहैं कैसैं हाय चोट पर चोट बात की! हाय ! पुत्र यह कहा गई है दसा तिहारी। गए कहाँ तजि माता पितहिँ ससेक दुखारी ॥५९॥ हम तो साँचहिँ किये सहि अपराध तिहारे । पै दुखिनी मैया कौं क्याँ तजि बृथा सिधारे ॥ हाय-हाय जग मैं कैसे अब बदन दिखैहैं। कहा महारानी के साँहैं बात बनैहैं ॥ ६ ॥ जग कौँ यह बृत्तांत जनावन के पहिलै ही। महिषी की यह बदन दिखावन के पहिले ही॥ जानि परत अति उचित प्रान तजि देन हमारौ । जामैं सब संसार माहि मुख होहि न कारौ" ॥ ६१ ।। यह बिचार दृढ़ करि पीपर के पास पधारे। लीन्ही डोरी खोलि द्वैक घंटनि करि न्यारे ॥ मेलि तिन्हैं पुनि एक छोर पर फाँद बनायो । चढ़ि इक साखा बाँधि छोर दूजो लटकाया ॥ ६२ ॥ पै ज्याँही गर माँहि फाँद है कूदन चाहयौ । त्यौंही सत्य-विचार बहुरि उर माहिँ उमायौ । "हरे-हरे यह कहा बात हम अनुचित ठानी । कहा हमैं अधिकार भई जब देह बिगानी ॥ ३ ॥