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चौथा सर्ग कीन्हे कंबल बसन तथा लीन्हे लाठी कर। सत्यव्रती हरिचंद हुते टहरत मरघट पर॥ कहत पुकारि पुकारि "बिना कर कफन चुकाए। करहि क्रिया जनि कोइ देत हम सबहिँ जताए" ॥१॥ कहुँ सुलगति कोउ चिता कहूँ कोउ जाति बुझाई । एक लगाई जाति एक की राख बहाई ॥ विविध रंग की उठति ज्वाल दुर्गधनि महकति । कहुँ चरबी सौँ चटचटाति कहुँ दह दह दहकति ॥२॥