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फूलमती को कारौ तन बिकराल बदन लघु दृग मतवारे । लाल भाल पै तिलक केस छोटे घुघरारे ॥ अकबक बोलत बैन कयौ "हम तुम्हें बिकैहैं। तुम जो माँगत मोल पाँच सौ मोहर दैहैं" ॥४४॥ यह सुनि नृप हरषाइ कह्यौ “पानी इत आऔर लखि सकाइ पूछ्यौ "पै को तुम प्रथम बताऔ" ॥ सो बोल्या "हम डोम चौधरी मरघटवारे । अमल हमारौं रहत नदी के दुहूँ किनारे ॥४५॥ पूजन करत कलेस नसावन । बिना लिएँ कर कफन देत नहिँ मृतक जरावन ॥ धन-तेरस की साँझ और अधिरात दिवाली। नाचि कूदि बलि दै पूर्जे मसान औ काली ॥४६॥ सोई हम यह सुनौ मोल तुमकौँ अब लैहैं। तुरत गाँठि सौं खालि पाँच सौं मोहर देहैं। ॥ यह सुनि अति दुख पाइ नाइ सिर भूप विचारधौं । "तब नहि तो अब सबहिँ भाँति बिधिब्याँत बिगारचौ॥४७॥ बिक होत चंडाल बिके बिन ऋन न चुकत है। कीजे कौन उपाय हाय नहिँ धीर रुकत है ॥ औ अब साँजहु होन माहिँ कछु औसर नाही। अरे कहूँ है जाइ न दिन इनि झगड़नि माहीं ॥४८॥