को इस वक्त तलब किया है?"
ज़ोहरा,-"जब कि सुलसाना की ऐसीही मर्जी है कि आप फ़ौरन उनके रूबरू हाज़िर किए जांय, तो फिर इसमें आपको उन क्या है ?
याकूब-"मेरी मजाल क्या है, जो मैं उज्र कर सकू ! खैर चलिए; मगर यह तो बतलाइए कि इस वक्त सुलताना कहां तश- रोफ़ रखती हैं?"
ज़ोहरा,-"खास, अपनी ख़ाबग़ाह में।"
याकूब,-"ख़ास, अपनी ख़ाबग़ाह में !!! वहां पर इस वक़्त और कौन कौन हैं?"
ज़ोहरा,-"और कोई भी वहां पर नहीं है।"
याकूब,-(ताज्जुब से) "और कोई भी वहां पर नहीं है !!! सिर्फ बेगम साहिबा, तनहां अपनी ख़ाबग़ह में तशरीफ़ रखती हैं और आधीरात के वक्त तुम, बी ज़ोहरी ! मुझे चुपचाप वहां ले जाया चाहती हो?"
जोहरा,-"आपको इन सब दलीलों से क्या मतलब ? जो सर्कारी हुक्म है, उसे जल्द तामील कीजिए और फ़ौरन दर्बारी कपड़े पहन कर मेरे साथ होइए।"
याकूब,-"मगर नहीं, बी ज़ोहरा ! मैं आपके साथ इस वक्त कहीं नहीं जा सकता।"
ज़ोहरा,-(झलाकर ) " क्यों !"
याकूब,-"इसलिये कि यह आधीरात का,-सन्नाटे का वक्त है, रात अंधेरी है और आप एक खूबसूरत और नौजवान औरत हैं।"
जोहरा,-"तो क्या बेगम साहिबा के हुक्म की आप बेइज्जती किया चाहते हैं?
याकूब,-"लाहौल बलाकूवत ! अजी, बी ! बेगम के हुक्म की बेइज्जती तो तब समझी जाती, जब आप बेगम साहिबा का कोई हुक्मनामा मुझे देतीं और उस पर मैं अमल न करता।"
ज़ोहरा,-"लीजिए. सुलताना का हुक्म़नामा भी मैं अपने साथ लाई हूँ । मैं यह बखूबी समझती थी कि आप अक्ल दर्जे के जिद्दी आदमी हैं, मेरी बातों पर आपको एतकाद न होगा।"