मारी गई । (१) उसकी क़ब्र अबतक पुरानी दिल्ली में है।
रजीया के मारे जाने पर उसका दूसरा भाई मुइज़जुद्दीन बहराम दिल्ली का बादशाह हुआ, पर दो बरस, और दो महीने राज्य करके वह भी मारा गया और दर्वारियों ने उसके भतीजे अलाउद्दीन मसऊद को तस्तपर बैठाया। किन्तु चार बरस बाद वह भी मारा गया और उसका चाचा नासिरुद्दीन महमूद बादशाह हुआ । इसने राज काज के सारे भार को अपने बहनोई, और वज़ीर, ग़यासुद्दीन बलवन को, जो कि अलतिमश का गुलाम भी था, दे रक्खा था । सन् १२६६ ई० में नासिरुद्दीन के मरने पर ग़यासुद्दीन बलबन बादशाह हुआ और बीस बरस राज्य करके अस्सी बरस की अवस्था में मरा । उसके मरने पर जब उसके बेटे कराखां ने तख़ पर बैठना स्वीकार न किया तो उसके बेटे अर्थात नासिरुद्दीन के पोते मुइज्जुदान कैकुबाद को तख्तपर बैठाया गया, किन्तु वह ऐसा अय्याश था कि दो बरस भी राज्य न करने पाया और दर्बारियों ने उसे मार डाला और दिल्ली का राज्य गुलामों के बंश से निकल कर खिलजियों के हाथ में चला गया।
हम इस उपन्यास में रजीयावेगम का हाल लिखते हैं, इसलिये हमें उसीके राजत्वकाल का इतिहासमात्र लिखना था; किंतु हमने स्वाधीन भारतवर्ष पर पश्चिमवालों की चढ़ाई के आदि से लेकर गुलाम खान्दान तक का हाल, जिसमें रजीया पैदा हुई थी, इसलिए लिख दिया है कि जिसमें इतिहास के सिलसिले में गड़बड़ न हो और पढ़नेवाले उपन्यास के साथ ही साथ कुछ कुछ इतिहास का भी आनन्द लें, जिसमें लोगों की रुचि केवल उपन्यास हो पर न रह कर इतिहास की ओर भी झुके, जिससे हिन्दीभाषा में जो इतिहास का बिल्कुल अभाव है, वह मिटे । काशी हिन्दी रसिकों का अनुगामी, श्ली, जनवरी, सन् १६०४ ई. श्रीकिशोरीलालगोस्वामी ।
(१) कोई कोई ऐसा भी कहते हैं कि वह रजीया] जब दिल्ली को न ले सकी और अल्तूनियां मारा गया तो वह मर्दानी पोशाक में दिल्ली से भागी। जब वह रास्ते में सोगई तो किसी किसान ने उसकी पोशाक के तले ज़री और मोती टकी अंगिया देखली और औरत जानकर उसे मारंडाला और गहने कपड़े उतार लाश जमीन में गाड़ दी।