यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परिच्छेद)
६३
रङ्गमहल में हलाहल।
आशिक होगई थी, और अयूव भो उसे देखतेही उस पर मुश्ताक
हो गया था। फिर दो एक बार उन दोनों की दूर दूर से देखा-
भाली भी हुइ थी; पर दोनों एक दूसरे से आजही मिल सके थे;
उसमें भी जो,--'प्रथमग्रासे मक्षिकापातः'-हुआ, उसका न जाने
क्या नतीजा होगा,इसे कौन कह सकता है !
यह बात हम अभी कह आए हैं, कि गुलशन के जाने पर अयूब बदहयास हो, वहीं जहाँ का तहां पड़ा था और उसे दीन दुनियां की कुछ भी ख़बर न थी। उस समय लता की ओट में से किसी औरत ने सिर निकाल कर अयूब की ओर देखा जौर फिर तुरंत अपना चेहरा छिपा लिया।