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परिच्छेद)
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रङ्गमहल में हलाहल।


आशिक होगई थी, और अयूव भो उसे देखतेही उस पर मुश्ताक हो गया था। फिर दो एक बार उन दोनों की दूर दूर से देखा- भाली भी हुइ थी; पर दोनों एक दूसरे से आजही मिल सके थे; उसमें भी जो,--'प्रथमग्रासे मक्षिकापातः'-हुआ, उसका न जाने क्या नतीजा होगा,इसे कौन कह सकता है !

यह बात हम अभी कह आए हैं, कि गुलशन के जाने पर अयूब बदहयास हो, वहीं जहाँ का तहां पड़ा था और उसे दीन दुनियां की कुछ भी ख़बर न थी। उस समय लता की ओट में से किसी औरत ने सिर निकाल कर अयूब की ओर देखा जौर फिर तुरंत अपना चेहरा छिपा लिया।