निष्कण्टक राज्य का बादशाह हुआ। चार बरस राज्य करके जब वह मरगया, तब उसका बेटा आरामशाह दिल्ली के तहत पर बैठा, पर वह पूरे सालभर भी राज्य नहीं करने पाया था कि उसके बहनोई शमशुदीन अलतिमश ने, जो पहिले कुतुबुद्दीन का एक गुलाम था, उस (आरामशाह ) को तखत से उतार, ताज अपने सिरपर रक्खा ! उसके समय में बंगाल, सुलतान, कच्छ, सिन्धु, कन्नौज, बिहार, मालवा और ग्वालियर तक दिल्ली के राज्य में मिलचुके थे।
शमसुद्दीन के मरने पर उसका बेटा रुकनुद्दीन फ़ीरोज़शाह बादशाह हुआ, किन्तु वह ऐसा अय्याश और कुकर्मीथा कि सल्तनत उसने अपनी मां के भरोसे छोड़ रक्खी थी और आप रातदिन नशे तमाशबीनी, और रंडी भडुओं में डूबा रहता था। उसकी मां भी बड़ी हो ज़ालिम थी, इसलिये दर्बारियों ने सात ही महीने के भीतर तखत से उतार, उसकी बहिन रजीया बेगम को तीसरी नवम्बर, सन् १२३६ ईस्वी ( सन् ६३४ हिजरी) में तख्त पर बिठाया।
यह बेगम बड़ी चतुर थी। यद्यपि बहुत पढ़ी लिखी न थी, तौभी कुरान भलीभांति पढ़लेती थी । नित्य बादशाहों की भांति क़वा और ताज पहनकर तख्त पर बैठ, दर्बार करती, नकाब मुंह पर कभी नहीं डालती और बड़े अदल इन्साफ़ के साथ लोगों की नालिश फर्याद सुनती थी; किन्तु वह अपने अस्तबल के दारोगा पर, जो एक अत्यन्त सुन्दर, बलिष्ट और युवा था, और प्रतिदिन उसको बगल में हाथ का सहारा देकर उसे घोड़ेपर चढ़ाया करता था, आशिक होगई और उसे 'अमीरुल उमरा' का खिताब देबैठी। इस कारण दर्वारियों का जी उससे फिर गया। वह केवल तीन बरस, छः महीने और छः दिन राज्य करने पर, सन् १२३६ ई० के नवम्बर मास में तख्त से उतारी जाकर भटिंडे के किले में कैद की गई । उस समय उस किले का मालिक एक तुर्की सर्दार था, जिसका नाम अल्तूनियां था । रज़ीया ने चकमें देकर उससे निकाह कर लिया और फ़ौज इकट्ठी करके उसे दिल्ली पर चढ़ा लाई; किन्तु हारी और अल्तूनियां के साथ अपने भाई बहरामशाह के हाथों