लिये मुझे निहायतही खुशी हासिल हुई कि जितनी जुबान मैं जानता
हूँ, आप उनमें से किसी जुबान से भी महरूम नहीं हैं।"
सौसन,-" आप इस किताब को पढ़ चुके हैं?"
याकूब,--"कई मर्तवः।"
सौसन,--खैर तो लाइए, फुर्सत के वक्त मैं इसे देखूंगी; आप को इसकी कोई जल्दी तो नहीं है?"
याकूब,-" नहीं, कुछ भी जल्दी नहीं है ? आप दिलजमई के साथ इसे देखें । हां! अगर मुझे बीच में इसकी कुछ ज़रूरत होगी तो आपसे मांग लूंगा।
इतनेही में बाग़ से सब आदमियों के बाहर हो जाने के लिये चोबदार पुकारने लगा, जिसकी आवाज़ सुनकर सौसन और याकूब खड़े होगए और सासन ने घबरा कर कहा,--
"ओफ़ ! बातों में ज़रा न मालूम हुआ और बेगम साहिबा के बाग़ में आने का वक़्त हो गया!"
याकूब,-"हां अब मैं भी बाग़ से बाहर जाता हूँ। क्या मैं इस बात की उम्मीद रक्खूं कि फिर भी मुलाक़ात नसीब होगी!"
सौसन,- "अगर याद रखिएगा तो ज़रूर मुलाक़ात होगी, न इसकी क्या उम्मीद है?"
याकूब,-"यह तो आप ज़ख़्म पर नमक छिड़कने लगीं।"
निदान, फिर दोनों ने एक दूसरे का हाथ चूमा और दोनों दो ओर से निकल गए। किताब लिए हुई सौसन जल्दी जल्दी महल में पहुंची और याकूब खाली हाथ बाग़ के बाहर चला गया।