ने अपने उस कुसूर को तुरंत कबूल कर लिया, माफ़ी मांगी और आगे से ऐसी हर्कत-ई-बेजा न करने की क़सम खाई।
फिर पेशकार के इशारा करने पर काज़ी ने हरिहरशर्मा आदि हिन्दुओं को लाकर हाजिर किया और हरिहरशर्मा ने संक्षेप में घे ही सब बातें बयान की, जो कि उन्होंने एक दिन पहिले सरे ज़मीन पर बुड्ढे फकोर से कही थीं। इसके बाद वे सब बलवाई हाज़िर किए गए, पर उन्होंने बड़ी शोख़ी के साथ अपने किसी कसूर को भी कबूल न किया, बल्कि यों कहा कि,-"हम बेगुनाहों को सारी सिपाही बिला वजह घरों में घुस घुस कर पकड़ लाए हैं। किन्तु उनके इस शरारत से भरे उन पर कुछ भी ध्यान न दिया गया और हर एक को तीन तीन साल के बामिहनत जेल की सज़ा दी गई। सज़ा का हुक्म होते ही वे सब जेलखाने भेजे गए और गउवें, जो वहांपर लुटेरों के यहांसे लाकर रक्खी गई थीं, हरिहरशर्मा को देदी गई क्योंकि वे सब उसी मन्दिर की थीं, जिसका हाल लिखा गया है।
इसके बाद एक स्त्री, जिसकी नाक कटी हुई थी और उस पर पट्टी बंधी हुई थी, दर में आई और उसने यह फर्याद की कि,-'एक रोज़ ठीक वक्त पर खाना न पकाने के क़सूर में मेरे शौहर ने मेरी नाक काट कर मुझे घर से निकाल दिया है । इस पर उसका शौहर पकड़ कर लाया गया और सुबूत लेने बाद नाक काट कर वह दर्बार से बाहर निकाल दिया गया और वह औरत यतीमख़ाने भेज दी गई।
एक मुक़द्दमा 'ज़िनाविल्ज़ब्र' का था । उसमें उस शख़्स की दस बरस की सज़ा की गई, जिसने एक लड़की को खराब किया था; और उस लड़की को हर्जाने के तौर पर उस बदकार मर्द से दो हज़ार रुपए दिलवाए गए।
कई दिन पहिले एक शख्स ने यह नालिश की थी कि,--"फलां मुकाम पर 'ख़ाजे हसन हब्बाल' नाम का एक सौदागर रहता है, वह मेरी बीवी को निकाल ले गया है।” इस पर वह शख़्स मय उस औरत के गिरफ़्तार कर के लाया गया था, पर उस औरत ने उस सौदागर के साथ निकल जाने में अपनी रजामंदी जाहिर की, इसलिये उस औरत की शरारत पर यह सज़ा दी गई कि उस