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छठां
रज़ीयाबेगम
जायगा।"
इस पर यद्यपि हरिहर ने बहुत कुछ कहा, पर बुड्ढा मुस्कुरा- कर फिर किसी दिन आने का वादा करके वहां से चलता बना; उसके दोनों शार्गिद या चेले भी उसके पीछे हो लिये। फिर उसी तरह वे तीनों रट लगाते और गली कूचे में घूमते हुए अंधेरा होने पर एक मैदान पार करके शाही किले के पिछवाड़े एक चोर दर्वाजे पर जाकर ठहर गए । तब एक शार्गिद ने उस दर्वाजे को थपथपाया, जिस इशारे को समझ किसीने भीतर से कुंडी खोलदी और वे तीनों भीतर घुस गए । दर्वाज़ा फिर भीतर से बंद कर लिया गया ।