बुड्ढा फ़कीर,-"तौबः, तौवः ! यह जुल्म है, पाक़ कुरान शरीफ की ऐसी मनशा हर्गिज़ नहीं है । बखुदा, आपलोग ज़रा रहम को जगह दें, इस बुड्ढे की बात माने और जुल्म से हाथ खैंचें।"
कई मुसलमान,-(ज़ोर से चिल्लाकर ) " हर्गिज़ नहीं, हर्गिज़ नहीं; तू बुड्ढे ! अगर अपनी बिहतरी चाहता है तो फौरन यहां से हट जा, वर न तू भी काफिरों में शुमार किया जाकर मारा जायग।"
बुड्ढा फ़क़ीर,-"भाइयों ! अगर हमारे मार डालने से तुम्हारी कुछ बिहतरी होती हो तो, आओ, लो, यह सर हाज़िर है ; मगर यों तो जबतक दम में दम है, हम इस जुल्म के करने से तुम लोगों को ज़रूर रोकेंगे।"
एक मुसलमान,--" मालूम होता है कि तेरी शामत आई है।"
बुड्ढे ने खड़े होकर इधर उधर नज़र दौड़ा कर देखा और यों
कहा,--"अगर ऐसाही है तो तुमलोग बेगम साहिबा के रूबरू शरीर हिन्दुओं पर नालिश क्यों नहीं करते?"
दूसरा मुसलमान,-" हमलोग अपना फैसला आप करते हैं, किसी बेगम या बादशाह की पर्वा नहीं करते; यह बुज़दिल हिन्दुओं का ही काम है, कि जो दूसरों पर अपनी किस्मत के फैसले का भरोसा रखते हैं, इसलिये उनका जहां जी चाहे, हमारे बखिलाफ़ नालिश फ़र्याद किया करें।"
बुड्ढा फ़क़ीर,-"तो क्या, तुमलोग अपने को सुल्ताना रज़ीया बेगम की रियाया नहीं समझते?"
तीसरा मुसलमान,--चाहे रज़ीया हो, या रुस्तम जो हमारे दोन इस्लाम के जोश में ख़लल पहुंचाए, उस क़ाफ़िर को हम लोग कुछ भी पर्वा नहीं करते, बल्कि उसका मार डालना ही बिह- तर समझते हैं।"
बुड्ढा फ़क़ीर,--तब तो तुमलोग ख़ासे काफ़िर हो और नाहक 'दीन, दीन' का शोर मचाकर पाक इसलाम मजहब के वसूलों पर दाग़ लगाते हो।"
बुड्ढा फ़क़ीर इतनाही कहने पाया था कि मुसलमानों ने घड़ा शोर मचाना प्रारम्भ किया ; वे सब बेचारे बुड्ढे के मार.