पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/४२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३४
(पांचवां
रज़ीयाबेगम।

फिर न कहना ओ बुते ऐय्यार क्या मालूम था ॥
यह ख़बर होती तो उसको दिल न देते ऐ वहीद।
कौल से फिर जायगा वह यार क्या मालूम था॥"(१)

इसके बाद गुलशन ने बीन लेकर गाना शुरू किया और सौसन बांया बजाने लगो,-

"इश्क क्या शै है, किसी कामिल से पूछा चाहिए।
किस तरह जाता है दिल, वेदिल से पूछा चाहिए।
क्या तड़पने में मजा है. कत्ल हो प्यारे के हाथ।
उसकी लज्जत को किसी बिस्मल से पूछा चाहिए॥
जिसने उसका ज़ख्म खाया है, उसे मालूम है।
तेगे अवरू की सिफत घायल से पूछा चाहिए॥
यार के मिलने की तो कोइ तह वन आती नहीं।
तरह मिलने की किसी वासिल से पूछा चाहिए।
आहो नाले की हकीक़त देखता हूं हिज़ में।
क्या गुज़रती होगी, ताबां दिल से पूछा चाहिए॥”(२)

निदान, योंहीं दस बजे रात तक गाने, बजाने और शराब, कबाब का बाजार गर्म रहा, फिर रज़ीया उस जलसे को बर्खा़स्त करके उठी और अपने महल में जाकर खाना खाने बाद मखमली पलंग पर सो रही । उसकी पलंग के दोनो ओर अपनी अपनी पलंग पर सौसन और गुलशन सोई और बीस से अधिक बांदियां नंगी तल्वारे लिये बेगम और उसकी सहेलियों के पलंग के चारों ओर पहरे पर मुस्तैद रहीं। यों, जब दो घंटे बीत जाते तो उतनी ही दूसरी खवासिने उस ख़ावगाह में आकर पहरे पर मुस्तैद होती और पहिली बांदियां छुट्टी पाकर वहांसे चली जाकर आराम करती थीं; यह प्रति दिन का नियम था।

आज रज़ीया, सौसन और गुलशन अपने अपने पलंग पर पड़ी तो दिखलाई देती हैं, पर यह नहीं जान पड़ता कि ये नींद में सोई भी हैं; इसलिये कि ये बार बार करवटें बदलती हैं, जिससे इनकी बेकली साफ़ ज़ाहिर होती है, पर ऐसा क्यों हो रहा है, या इसका कारण क्या है, यह बात आगे आपही खुल जायगी, अभी पाठक धीरज रक्खें।


(१) वहीद। (२) ताबां ।