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(चौथा
रज़ीयाबेगम।

एक सुहावने दूब के तख़्ते पर बिछी हुई संगमर्मर की चौकी पर जा बैठी और आपस में बातचीत करने लगी,--

सौसन ने कहा,--" बी, गुलशन ! सुना है कि कल उन दोनों बहादुरों की सवारी बड़ी शान शौकत के साथ शहर में निकली और तमाशाइयों का वह हजूम था कि जिसका इन्तेहा नहीं। अफ़सोस ! वह जलूस हम लोगों ने न देखा।"

गुलशन ने नाक सकोड़ कर कहा,--"लाहौलवलाकूवत ! भई ! दुम्हारी भी क्या तबीयत है ! अजी दोस्त ! अगर एक गुलाम की सवारी न देखो तो न सही । उसका जलूस ही क्या और देखना ही क्या।"

गुलशन की ये बातें सौसन को बहुत ही बुरी लगो और उसने भीतर ही भीतर ताव पेच खाकर कहा,--

"बी, गुलशन ! यह तुम्हारा महज़ ग़लत ख़याल है ! क्या गुलामों को खुदा ने किसी और हाथ या मसाले से बनाया है ! और क्या गुलाम इन्सान ही नहीं; गोया, तुम्हारे ख़याल से-निरा हैवान है ! ज़रा तो तुमने इस बात पर गौर किया होता कि वह शखस, जिसका कि नाम अब मालूम हुआ है कि 'याकूब' है, कितना खूबसूरत, जवांमर्द और दिलेर शख़्स है!!!"

गुलशन,--"और उसका शागिर्द 'अयूब' ही खूबसूरती और सिपहगरी में क्या कम है?"

सौसन,--"बेशक ! वे दोनों ही एक से हैं, और खूबसूरती व जवांमर्दी के बेजोड़ नमूने हैं; पस, ज़रा ग़ौर तो करो कि ऐसे शख़्स क्या गुलामी की जज़ीर से जकड़े रहने लायक हैं और क्या इनकी क़दर गुलामी में पड़े रहने से कभी हो सकती है?"

गुलशन;- "इस बारे में मेरी राय, बी, सौसन ! तुम्हारी राय से इत्तिफ़ाक़ नहीं करती। वजह इसकी यह है कि मेरे ख़याल से फ़क़त खबरूई ही इन्सान को आलः दर्जे का नहीं बना सकती। मुमकिन है कि इन खूबसूरत गुलामों के अन्दर भी वेही ख़ौफ़नाक चीजें भरी होंगी, जोकि बदसूरत हबशी गुलाम में पाई जाती इस वास्ते अंदरूनी हालात के जाने बगैर, किसीकी-ज़ियादह- तर इन गुलामों की-बाहरी खूबसूरती पर यकीन करना सरासर बेबकूफ़ी है।"