असली तल्वार की नकली लड़ाई समाप्त हुई और दोनों उस्ताद और शागिर्द ज़मीन में तल्वार टेक कर आदाब बजा लाए।
निदान, तमाशा बंद कराया गया, सुलताना की आज्ञा के अनुसार उन दोनों उस्ताद और शागिर्द को हाथी पर चढ़ाकर सारे शहर में घुमाने की तैयारी होने लगी और जो कुछ भीड़-भाड़ इकट्ठी हुई थी, एक एक कर के किले से बाहर होने और बाहर सड़कों, मकानों, दूकानों और कोठों पर जाजाकर जमने लगी; क्योंकि सुलतानी के आज्ञानुसार विजयी युवक वीर की सवारी निकलने- बाली है । बात की बात में सारे शहर में इस बात की धूम मचगई और तमाशाई लोगों में से उस संवारो या उसं बीरवर के देखने के लिये जिसने जहां जगह पाई, आ जमें । जो लोग किले में न जासके थे, या जिनकी योग्यता शाही तमाशे में शरीक होने योग्य न थी, वे बेचारे केवल उस विजयी युवक वीर को देख कर ही संतोष कर लेने के लिये, जहां जगह पाई आ जमें थे।