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(दूसरा
रज़ीयाबेगम।

गुलाम चोट किसी भांति भी युवक पर नहीं पहुंचा सकता था, इस लिये वह मारे क्रोध के अन्धा हो गया और घबराहट के मारे बराबर निशाना चूकता गया; किन्तु युवक वीर को न घबराहट थी, न क्रोध था, न थकावट थी और न अपने मुकाबले वालेसे किसी तरह की हिचक थी, इस लिये वह बड़ी सावधानी औरफुर्ती से मोटेमल के वार को रोकता, उसके वार का जवाब देता और मौके मौके पर उसके मोढ़े, कलाई और पीठ पर वार भी करता था । मो आधे घंटे के पूरे होते होते ही उसने मौका देख कर एक ऐसा हाथ मोटेमल की कलाई पर जमाया कि उसके हाथ को नली पहुंचे से टूट गई और वह तलमला कर अखाड़े में गिर पड़ा।

यह देख चारों ओर से ' वाह वाह ' की आवाज़ सुनाई देने लगी। बीर युवक ने झुक कर बेगम साहिबा को सलाम किया और हाथ जोड़ कर यों निवेदन किया; जहांपनाह ! कुश्ती लड़ना भी जानता है, अगर हुजूर की इजाजत होतो ताबेदार लड़ने के लिये तैयार है।"

उस वीर युवक की इस प्रार्थना को सुलताना ने बड़ी प्रसन्नता से स्वीकार किया और अपनी लौड़ी के द्वारा यह आज्ञा प्रगट की कि,-" अगर कोई पहलवान यहां पर मौजूद हो तो वह इस जवां मर्द से कुश्ती लड़े। इस बाज़ी के मारने वाले को भी एक हजार अशफ़िया इनाम दी जावेंगी।"

निदान, फिर तो एकही नहीं, बरन एक के पीछे दूसरे; योहीं सोलह पहलवान अखाड़े में आए, पर दो दो चार चार मिनट में ही उन सभों ने ज़मीन देखी । अन्त में विजयी युवक वीर ने सुलताना को सलाम करके निवेदन किया कि,-"अगर यह गुलाम जहांपनाह का हुक्म पाए तो अपने एक शागिर्द के साथ सच्ची तलवार से पूरे एक घण्टे तक कुछ पटेबाजी का जौहर दिखलाए। इसमें खूबी यह होगी कि एक घण्टे तक लगातार लड़ने पर भी सच्ची तलवार मेरे या मेरे शागिर्द के बदन में जखम हर्गिज़ नहीं पहुंचा सकेगी।"

यह एक ऐसी विचित्र बात थी कि जिसने सुलताना, उसकी सहेलियों और सभी देखने वालों के मन में गुदगुदी पैदा करदी। अन्त में सुलताना की आज्ञा पाकर उस युवक बीर ने अपने शागिर्द को पुकारा,अय, अजीज़, अयूब ! ज़रा इधर तो आ।"