से उठा ले गए।
जब तक शेर तड़पता रहा, भैंसा उसके पासही खड़ा खड़ा उसे देखता रहा, पर जब भाला लिये हुए पचासों मज़दूर वहां पर पहुंच गए तो भैंसा अपने पिंजड़े में चला गया और उन सभों के जातेही फिर रंगभूमि में आकर उपद्रव मचाने लगा । आधे घंटे तक उस खूनी भैंसे ने खूबही उत्पात मचाया, यहां तक कि देखने वालों को त्रास होने लगा; किन्तु बेगम साहिबा का इशारा पाकर नगाड़ों का बजना बन्द कराया गया और सन्नाटा होने पर सुल्ताना की एक ख़वासिन ने खड़े होकर यों कहा,--
क्या इस मज़में में ऐसा भी कोई जवांमर्द शख्स है, जो इस भैंसे के साथ लड़ सके और सुल्ताना बेगम साहिबा से मुंहमांगा इनाम लेवे?
"बांदी के इन शब्दों ने, जो अवश्य बेगमसाहिबा के इच्छानुसार ही कहे गए थे, देखनेवालों के मन में खलबली डाल दी। आधे घंटे तक रंगभूमि में गहरा सन्नाटा छाया रहा, पर कोई मर्दबच्चा उस खूनी भैंसे से जूझने के लिये रंगभूमि में न उतरा । यह देख फिर वही बांदी खड़ी हुई और उसने अपनी कड़ी और सुरीली आवाज़ में यों कहा,--
"तो क्या इस शाही जलसे में सभी नामर्द इकट्ठे हुए हैं और मर्दमी का दावा रखनेवाला कोई भी यहां पर मौजूद नहीं है? सुल्ताना यह आख़िरी हुक्म देती हैं कि अगर कोई शख्स इस भैंसे का मुकाबला करने लायक होतो वह फ़ौरन मैदान में आवे, वनः यह तमाशा ख़तम किया जावे। फ़क़त आध घंटे की मुहलत और दी जाती है, इसके दर्मियान अगर कोई शख़्स नज़र न आया तो यह तमाशा मौकूफ़ किया जावेगा । मगर जो शख़्स लड़कर इस भैंसे को मार डालेगा, उसे पांच सौ दीनारें बख़शी जावेंगी।"
बांदी की इस बात ने रंगभूमि में एक नया रंग पैदा किया और एक देवसरीखे डीलडौलवाला सुन्दर युवक अपने कपड़े उतार और जांघिया पहिर कर हाथ में केवल एक हाथभर लंबा छुरा लिये हुए रंगभूमि में उतरा। उसके उतरते ही रंगभूमि में एकाएक बड़ा कोलाहल मच उठा; जो बड़ी कठिनाई सेथोड़ी देर में शान्त किया गया और सुलत का इशारा,पाकर फिर ढक बजने लगे।