रुकनुद्दीन फ़ीरोज़शाह दिल्ली के तख्तपर बैठ गया, किन्तु वह रात दिन रंडी भडुओं के साथ गुलछरें उड़ाता, शराब पीता और तमाशबीनी में डूबा रहता था। राजकाज का भार इसने अपनी मां कुसीदा के हाथ में दे रक्खाथा। मां उसकी बड़ी ज़ालिम थी और राज काज को कुछ भी नहीं समझती थी। उसका परिणाम यह हुआ कि ख़ज़ाना धीरे धीरे लुटने और खाली होने लगा । उधर, रज़ीया ने, जो बाप के साथ थी और बाप के मरने पर एक बड़ी फ़ौज के साथ दिल्ली को आती थी, जासूसों को भेज कर अपनी मां और भाई का हाल मालूम किया और शाही दर्बार के कई बड़े बड़े सर्दारों को अपनी ओर मिलाकर बड़ी दिलेरी के साथ दिल्ली पर बढ़ाई की और अपने भाई रुकनुद्दीन को, जो केवल सातही पहीने तख़्तपर बैठने पाया था, तख्त से उतार दिल्ली और बाद- साही तख़्तपर अपना कब्ज़ा किया।
आज सन् १२३६ ई० की तीसरी नवम्बर का संध्याकाल है। कल (२री नवम्बर ) को रज़ीया अपने बड़े भाई से तख्त़ छीन कर सुल्ताना बन चुकी है, आज उसका दूसरा दिन है; अर्थात आज ताजपोशी के जलसे का पहिला दिन है, इसीकी धूम सारे शहर में मची हुई है !!!
सोई कहते हैं कि दिल्ली महानगरी में आज बड़ी धूम मची हुई है। आज इस नगरी की सजावट का वारापार नहीं है। प्रत्येक गली, कूचे, सड़क, बाजार और राजपथ सुथरे, सँवारे और गुलाबजल से तर बतरहोरहे हैं; शहर के छोटे से बड़े तक सभी उमंग में भरे, सज धज कर इधर उधर घूम रहे हैं; सारी नगरी में ऐसा कोई भी घर नहीं है, जो रंगा, पुता, सुथरा, सँवारा और सजा सजाया न हो और जिसके द्वार पर कदलीखंभ और बंदनवार के अलावे नौबत न बज रही हो । सारे शहर में दिवालो को मात करनेवाली रौशनी हो रही है, बाज़ार और दूकानें खूब सजी हुई हैं और साधारण जन पैदल तथा अमीर उमरा हाथी, घोड़े, रथ, गलकी और तामजाम पर इधर उधर घूम रहे हैं। बड़े बड़े अमीरों के मकानों और जहां तहां राजमार्ग में नाच, तमाशे और भांति भांति के खेल हो रहे हैं और भीड़ का कोई ठौर ठिकाना नहीं है । इतने पर भी कहीं किसी तरह का गोलमाल