नकाबपोश,-"तुम्हारा कहना सही है, मगर इस बात का यकीन
मुझे तब होगा, जब तुम याकूच का सर कटवा कर मेरे हवाले
करोगी।"
रज़ीया,-" बेशक, यह बात मुझे मंजूर है और यह काम मैं खुशी के साथ कर डालूंगी, मगर इस वक्त तो वह काम नहीं हो सकता न?"
नकाबपोश,-" यह मैं भी समझता हूं कि वह काम इस वक्त नहीं हो सकता; मगर खैर, जब तक याकूब का सर तुम न मंगा दोगी, इस कैद से तुम्हारा छुटकारा नहीं होगा।"
"रजीया, यह तुमने दूसरा शर निकाला ! तुम सोच सकते हो कि भला इतनी ज़ियादती से आपस में मिल्लत या मुहब्बत क्यों कर बढ़ सकती है?”
नकाबपोश,-" यानी तुम मेरे साथ निकाह कर लेने पर भी ज्योहीं मेरे हाथ से छूटोगी, पहिले मेरी जान लेकर तब दूसरा काम करोगी; क्यों?"
रज़ीया,-" छिः ! मेरे कहने का यह मतलब नहीं है; और फ़र्ज़ करो कि अगर मैं वैसाही सलूक तुम्हारे साथ करूं, जैसा कि तुम सोच रहे हो, तो?"
नकाबपोश,-" इन बातों की मुझे ज़रा भी पर्वा नहीं है; बिल्फेल तो मैं तुम्हारे साथ निकाह कर के हमबिस्तर होऊंगा, फिर जो होगा, देखा जायगा।"
रजीया,-" मगर, साहब ! वह बात किस काम की, जिसका अख़ीर अच्छा न हो?"
नकाबपोश,-" रज़ीया; तुम्हारा किधर ख़याल है ? अजी हज़त ! मैं इस निकाह की सनद में तुम्हारे मुहर दस्तखत की एक चीठी तुमसे लिखवा लूंगा, और जब तुम मेरे साय दगा करने का इरादा करोगी तो वह ख़त तुम्हारे दर्वारियों को दिखला कर तुम्हारी फजीहती करूंगा! अब आया समझ के बीच में-कि मैं किस तरह तुमको अपने कब्जे में किए रहूंगा ?"
अब इस बात का जवाब वह वेचारी क्या देती ! इसलिये चुप रही। पर जितनी देर तक इतनी बातें उसने की, घात बराबर अपनी उम्र कटार पर वह लगाए रही, जो नकाबपोश ने इससे