पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/१०९

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परिच्छेद)
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रङ्गमहल में हलाहला।


न दिखलाओ, मगर यह यकीन करो कि अब सिवा सौसन के याकूब के दिल में किसी गैर नाज़नी को हर्गिज़ जगह न मिलेगी और यह तुम्हारा आशिक फ़कत तुम्हारीही याद में अपनी उम् खो देगा।"

सौसन,-"प्यारे ! अगर मैं मरजाऊं, तो भी क्या तुम बेगम की आयें पूरी न करोगे?"

याकूब,-"सौसन ! खुदा के वास्ते यह फलमा ज़बान से बाहर न निकालो। और अगर यह यकीन न हो तो जब चाहो, बात की आजमाइश कर लो कि जिस घड़ी मेरे कानों ने यह सुना कि,-'सौसन ने विहिश्त की ओर कूच किया; ' उसी घड़ी याकूब अपनी जान देडालेगा।

सौसन,-"तो क्यों प्यारे ! तुम धेगम की आजू किसी तरह पूरी न करोगे?

याकूब,-"कभी नहीं, क्यों कि यह काम मुझसे हर्गिज़ न होगा, चाहे इस में मेरी जान जाय या रहे।

सौसन,-"मगर सुनो तो प्यारे ! ऐसा भी तो हो सकता है कि पहले तुग बेगम के साथ निकाह करलो, फिर मुझे भी अपनी बीबी बना लेना।"

याकूब,-"प्यारी, सौसन ! तुम्हारा किधर ख़याल है ? भला मैं अपने उस दिल को, जो अब दरहकीकत तुम्हारा ज़रखरीद गुलाम हो चुका, अब दूसरे को क्योंकर दे सकता हूं ? तिस पर तुर्रा यह कि बेगम साहिबा निकाह या शादी नहीं किया चाहती, बल्कि ज़िना या गुनाह करने की ही उनकी मनशा है। ऐसी हालत में, प्यारी सौसन ! बंदा भला कब उनकी बातों में आ सकता है ? और इस बात का तुम ज़रा भी गुमान न करो कि बेगम से आशनाई कर लेने पर भी मैं तुम्हें अपनी बीबी बमा सर्वांगा; क्योंकि वह कंबन अजब नहीं कि तुम्हें मार डाले और जब मुझसे उसका दिल भर जाय तो किसी दूसरे शख्स की तलाश करे और मुझे भी दुनियां से राही करदे।"

ये बातें ऐसी थीं कि जिन्होंने सौसन के कलेजे को दहला दिया और उसने थर्रा कर लड़खड़ातो हुई आवाज़ से कहा,-

"तो प्यारे ! क्या होगा?"