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रघुवंश।

जानते थे। उन्हीं के बताये हुए मार्ग से रघु, शीघ्र ही, कलिङ्गदेश के पास जा पहुँचा।

कलिङ्गकी सीमा के भीतर घुस कर, उसने महेन्द्र-पर्व्वत (पूर्वी घाट) के शिखर पर अपने असह्य प्रताप का झण्डा इस तरह गाड़ दिया जिस तरह कि पीड़ा की परवा न करनेवाले उन्मत्त हाथी के मस्तक पर महावत अपना तीक्ष्ण अङ्कुश गाड़ देता है। रघु के आने का समाचार सुनते ही कलिङ्ग-देश का राजा, बहुत से हाथी लेकर, उससे लड़ने के लिए आया। अपने वज्र के प्रहार से पर्वतों के पंख काटने के लिए जिस समय इन्द्र तैयार हुआ था उस समय पर्व्वतों ने जिस तरह इन्द्र पर पत्थर बरसाये थे उसी तरह कलिङ्ग-नरेश और उसके सैनिक भी रघु पर शस्त्रास्त्र बरसाने लगे। परन्तु वैरियों की बाणवर्षा को झेल कर रघु ने उन्हें लोहे के चने चबवाये। जीत उसी की रही। विजय लक्ष्मी उसी के गले पड़ी। उस समय वह मङ्गलस्नान किया हुआ सा—जीत के उपलक्ष्य में यथाशास्त्र अभिषिक्त हुआ सा—मालूम होने लगा। उसके योद्धाओं ने इस जीत की बेहद ख़ुशी मनाई। उन्होंने, समीपवर्ती महेन्द्र-पर्व्वत के ऊपर, मद्य-पान करने की ठानी। इस निमित्त उन्होंने एक स्थान को सजा कर उसे ख़ूब रमणीय बनाया। फिर वहीं एकत्र होकर, सबने, बड़े बड़े पान के पत्तों के दोनों में, नारियल का मद्य पिया। इतना ही नहीं, किन्तु साथ ही उन्होंने अपने शत्रुओं का यश भी पान कर लिया। राजा रघु धर्म्मविजयी था। दूसरों के राज्य छीन कर उन्हें मार डालना उसे अभीष्ट न था। क्षत्रियों के धर्म्म के अनुसार, केवल विजय-प्राप्ति के लिए ही, उसने युद्ध-यात्रा की थी। इससे उसने कलिङ्गदेश के राजा को पकड़ तो लिया, पर पीछे से उसे छोड़ दिया। उसकी सम्पत्ति मात्र उसने ले ली, राज्य उसका उसी को लौटा दिया।

इस प्रकार पूर्व-दिशा के राजाओं को जीत कर रघु ने, समुद्र के किनारे ही किनारे, दक्षिणी देशों की तरफ़ प्रस्थान किया। कुछ दिन बाद, बिना यत्न और इच्छा के ही विजय पानेवाला वह विजयी राजा, फलों से लदे हुए सुपारी के वृक्षों से परिपूर्ण मार्ग से चल कर, कावेरी-नदी के तट पर जा पहुँचा। वहाँ, हाथियों के गण्डस्थल से निकले हुए मद से सुगन्धित हुए उसके सैन्य ने उस नदी में जी खोल कर जलविहार किया। रघु ने उसे, इस प्रकार, क्रीड़ा करने की आज्ञा देकर, नदीनाथ समुद्र को, कावेरी के सतीत्वसम्बन्ध में, सन्देहयुक्त सा कर दिया। समुद्र के मन में, उस समय, यह शङ्का सी होने लगी कि मुझे छोड़ कर, क्या यह कावेरी अब सदा रघु के सैन्य समुदाय ही का उपभोग करती रहेगी?