किया। अन्धकार का नाश करनेवाले चन्द्रमा को पाकर जिस तरह दक्ष प्रजापति की बेटियाँ शोभित हुई थीं, उसी तरह रघु के समान सद्गुण-सम्पन्न पति पाकर राजाओं की बेटियाँ भी सुशोभित हुईं।
पूर्ण युवा होने पर रघु की भुजायें गाड़ी के जुए के सदृश लम्बी हो गईं। शरीर ख़ूब बलवान् हो गया। छाती किवाड़ के समान चौड़ी हो गई। गर्दन मोटी हो गई। यद्यपि शक्ति और शरीर की वृद्धि में वह अपने पिता, दिलीप, से भी बढ़ गया, तथापि नम्रता के कारण वह फिर भी छोटा ही दिखाई दिया। प्रजापालनरूपी अत्यन्त गुरु भार को अपने ऊपर धारण किये हुए दिलीप को बहुत दिन हो गये थे। उसे उसने, अब, हलका करना चाहा। उसने सोचा कि रघु एक तो स्वभाव ही से नम्र है, दूसरे शास्त्र-ज्ञान तथा अस्त्रविद्या की प्राप्ति से भी वह उद्धत नहीं हुआ—वह सब तरह शालीन देख पड़ता है। अतएव, वह युवराज बनाये जाने योग्य है। यह विचार करके उसने रघु को युवराज कर दिया। कई दिन के फूले हुए कमल में उसकी सारी लक्ष्मी—उसकी सारी शोभा—अधिक समय तक नहीं रह सकती। वह नये फूले हुए कमल-पुष्प पर अवश्य ही चली जाती है। क्योंकि सुवास आदि गुणों पर ही उसकी विशेष प्रीति होती है—वह उन्हीं की भूखी होती है। विनय आदि गुणों पर लुब्ध रहने वाली राज्यलक्ष्मी का भी यही हाल है। इसी से अपने रहने के मुख्य स्थान, राजा दिलीप, से निकल कर उसका कुछ अंश, वहीं पास ही रहनेवाले युवराज-संज्ञक रघुरूपी नये स्थान को चला गया। वायु की सहायता पाने से जैसे अग्नि, मेघरहित शरद् ऋतु की प्राप्ति से जैसे सूर्य्य और गण्ड-स्थल से मद बहने से जैसे मत्त गजराज दुर्जय हो जाता है वैसे ही रघु जैसे युवराज को पाकर राजा दिलीप भी अत्यन्त दुर्जय हो गया।
तब, इन्द्र के समान पराक्रमी और ऐश्वर्य्यवान् राजा दिलीप ने अश्वमेध-यज्ञ करने का विचार किया। अनेक राजपुत्रों को साथ देकर उसने, धनुर्धारी रघु को यज्ञ के निमित्त छोड़े गये घोड़े का, रक्षक बनाया। इस प्रकार रघु की सहायता से उसने एक कम सौ अश्वमेध-यज्ञ, बिना किसी विघ्न-बाधा के, कर डाले। परन्तु इतने से भी उसे सन्तोष न हुआ। एक और यज्ञ करके सौ यज्ञ करने वाले शतक्रतु (इन्द्र) की बराबरी करने का उसने निश्चय किया। अतएव, विधिपूर्वक यज्ञों के कर्त्ता उस राजा ने, फिर भी एक यज्ञ करने की इच्छा से, एक और घोड़ा छोड़ा। वह स्वेच्छापूर्वक पृथ्वी पर बन्धनरहित घूमने लगा और राजा के धनुर्धारी रक्षक उसकी रक्षा करने लगे। परन्तु, इस दफ़े, उन सारे रक्षकों की आँखों में धूल डाल कर,
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