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रघुवंश।

गोप ताज़ा मक्खन लेकर उसे भेंट देने आते थे। उन लोगों की भेंट स्वीकार करके राजा उनसे मार्गवर्ती जङ्ली पेड़ों के नाम पूँछ पूँछ कर उन पर अपना अनुराग प्रकट करता था।

शीतकाल बीत जाने पर वसन्तऋतु में चित्रा नक्षत्र और चन्द्रमा का योग होने से जैसी दर्शनीय शोभा होती है, वैसी ही शोभा जङ्गल की राह से जानेवाले और अत्यन्त देदीप्यमान शुद्ध वेषवाले सुदक्षिणा-सहित उस राजा की हो रही थी। वनवर्ती मार्ग में जो जो चीजें देखने योग्य थीं उनको वह राजा अपनी रानी को दिखाता जाता था। इस कारण ज्ञाता होने पर भी उसे इस बात का ज्ञान ही नहीं हुआ कि कितना मार्ग मैं चल आया और कितना अभी और चलने को है। उसके शरीर की शोभा ऐसी दिव्य थी कि जो लोग उसे मार्ग में देखते थे उन्हें बड़ा ही आनन्द होता था। उसके यश की सीमा ही न थी; औरों के लिए उतने यश का पाना सर्वथा दुर्लभ था। चलते चलते उसके घोड़े तो थक गये, परन्तु मार्ग के मनोहर दृश्य देखने और अपनी रानी से बात-चीत करते रहने के कारण उसे मार्ग जनित कुछ भी श्रम न हुआ। इस प्रकार चलते चलते सायङ्काल वह अपनी रानी-सहित परम तपस्वी महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में जा पहुँचा।

वशिष्ठ ऋषि का वह आश्रम बहुत ही मनोरम और पवित्र था। अनेक वनों में घूम फिर कर समिध, कुश पार फल-फूल लिये हुए जब आश्रमवासी तपस्वी आश्रम को लौटते थे तब उनकी अभ्यर्थना तीनों प्रकार के अग्नि—दक्षिण, गार्हपत्य और आहवनीय—अदृश्य रूप से करते थे। ऐसे तपस्वियों से वह आश्रम भरा हुआ था। आश्रम की मुनि-पत्नियों ने बहुत से हिरन पाल रखे थे। उन पर ऋषि-पत्नियों का इतना प्रेम था और वे उनसे इतने हिल गये थे कि मुनियों की पर्णशालाओं का द्वार रोक कर वे खड़े हो जाया करते थे। जब तक ऋषियों की पत्नियाँ साँवा और कोदों के चावल उन्हें खाने को न दे देती थीं तब तक वे वहीं द्वार पर खड़े रहते थे। वे उनका उतना ही प्यार करती थीं जितना कि अपनी निज की सन्तति का करती थीं। आश्रम में ऋषियों ने बहुत से पौधे लगा रक्खे थे। उन्हें सींचने का काम मुनिकन्यायों के सिपुर्द था। वे कन्यायें पौधों के थाले में पानी डाल कर तुरन्तही वहाँ से दूर हट जाती थीं, जिसमें आस पास के पक्षी वह पानी आनन्द से पी सकें। उन्हें किसी प्रकार का डर न लगे—विश्वस्त और निःशङ्क होकर वे जलपान करें। वहाँ ऋषियों की जो पर्णशालायें थीं उनके अग्रभाग में जब तक धूप रहती थी तब तक ऋषियों का भोजनोपयोगी तृण-धान्य सूखने के लिए डाल रक्खा जाता