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रघुवंश।


पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश—इन पाँचों तत्वों का नाम पञ्च महाभूत है। जिस सामग्री से ब्रह्मा ने इन पाँच महाभूतों को उत्पन्न किया है, जान पड़ता है, उन्हीं से उसने उस राजा को भी उत्पन्न किया था। क्योंकि, पाँच महाभूतों के शब्द, स्पर्श आदि गुणों की तरह उसके भी सारे गुण दूसरों ही के लाभ के लिए थे। जो कुछ वह करता था सदा परोपकार का ध्यान रख कर ही करता था। समुद्र-पर्यन्त फैली हुई इस सारी पृथ्वी का अकेला वही एक सार्वभौम राजा था। उसका पालन और रक्षण वह बिना किसी प्रयास या परिश्रम के करता था। उसके लिए यह विस्तीर्ण धरणी एक छोटी सी नगरी के समान थी।

यज्ञावतार विष्णु भगवान् की पत्नी दक्षिणा के समान उसकी भी पत्नी का नाम सुदक्षिणा था। वह मगधदेश के राजा की बेटी थी। उसमें दाक्षिण्य, अर्थात् उदारता या नम्रता, बहुत थी। इसीसे उसका नाम सुदक्षिणा था। यद्यपि राजा दिलीप के और भी कई रानियाँ थीं, तथापि उसके मन के अनुकूल बर्ताव करने वाली सुदक्षिणा ही थी। इसीसे वह एक तो उसे और दूसरी राज्यलक्ष्मी को ही अपनी सच्ची रानियाँ समझता था। राजा की यह हृदय से इच्छा थी कि अपने अनुरूप सुदक्षिणा रानी के एक पुत्र हो। परन्तु दुर्दैववश बहुत काल तक उसका यह मनोरथ सफल न हुआ। इस कारण वह कुछ उदास रहने लगा। इस प्रकार कुछ समय बीत जाने पर उसने यह निश्चय किया कि सन्तान की प्राप्ति के लिए अब कुछ यत्न अवश्य करना चाहिए। यह विचार करके उसने प्रजापालनरूपी गुरुतर भार अपनी भुजाओं से उतार कर अपने मन्त्रियों के कन्धों पर रख दिया। मन्त्रियों को राज्य का कार्य सौंप कर भार्य्या-सहित उसने ब्रह्मदेव की पूजा की। फिर उन दोनों पवित्र अन्तःकरण वाले राजा-रानी ने, पुत्रप्राप्ति की इच्छा से, अपने गुरु वशिष्ठ के आश्रम को जाने के लिए प्रस्थान कर दिया।

एक बड़े ही मनोहर रथ पर वह राजा अपनी रानी—सहित सवार हुआ। उसके रथ के चलने पर मधुर और गम्भीर शब्द होने लगा। उस समय ऐसा मालूम होता था मानों वर्षा-ऋतु के सजल मेघ पर बिजली को लिये हुए अभ्र-मातङ्ग ऐरावत सवार है। उसने अपने साथ यह सोच कर बहुत से नौकर चाकर नहीं लिये, कि कहीं उनके होने से ऋषियों के आश्रमों को किसी प्रकार का कष्ट न पहुँचे। परन्तु वे दोनों राजा-रानी इतने तेजस्वी थे कि तेजस्विता के कारण बिना सेना के भी वे बहुत सी सेना से घिरे हुए मालूम होते थे। इस प्रकार जिस समय वे मार्ग में