नाचने में नर्त्तकियों को बहुत परिश्रम पड़ता। उनके मुख पर पसीने के बूँद छा जाते। इससे उनके ललाट पर लगे हुए तिकल धुल जाते। जब वे थक कर नाचना बन्द कर देतीं और बैठ जातीं तब उनके तिकल-हीन मुखमण्डल देख कर अग्निवर्ण के आनन्द की सीमा न रहती। उस समय वह अपने को इन्द्र और कुबेर से भी अधिक भाग्यशाली समझता।
धीरे धीरे अग्निवर्ण की भोगलिप्सा बहुत ही बढ़ गई। कभी प्रकट कभी अप्रकट रीति से वह नित नई वस्तुओं की चाह में मग्न रहने लगा। यह बात उसकी रानियों को पसन्द न आई। अतएव वे उससे अप्रसन्न होकर उसके इस काम में चित्र डालने लगीं। उँगली उठा उठा कर उन्होंने उसे धमकाना, भौंहें टेढ़ी करके उस पर कुटिल कटाक्षों की वर्षा करना और अपनी मेखलाओं से उसे बार बार बाँधना तक आरम्भ किया। अग्निवर्ण उन्हें धोखा देकर मनमाने काम करता। इसीसे क्रुद्ध होकर वे उसके साथ ऐसा व्यवहार करतीं।
उसकी रानियाँ उसके अनुचित बरताव से तङ्ग आ गईं। अपने ऊपर राजा का बहुत ही कम प्रेम देख कर उनका हृदय व्याकुलता से व्याप्त हो गया। हाय हाय करती और सखियों से करुणापूर्ण वचन कहती हुई वे किसी तरह अपने दिन बिताने लगीं। यद्यपि अग्निवर्ण कभी कभी, छिप कर, उनकी ये करुणोक्तियाँ सुन लेता था तथापि रानियों के रोन धोन का कुछ भी असर उसके हृदय पर न होता था। नर्त्तकियों के पास बैठने उठने की उसे ऐसी आदत पड़ गई थी कि यदि रानियों के दबाव के कारण वह उनके पास तक न पहुँच पाता तो घर पर उनकी तसवीर ही खींच कर किसी तरह अपना मनोरञ्जन करता। तसवीर खींचते समय उसकी अँगुलियाँ पसीने से तर हो जातीं। अतएव तसवीर खींचने की शलाका उसके हाथ से गिर पड़ती। परन्तु फिर भी वह इस व्यापार से विरत न होता। समझाने, बुझाने और धमकाने से कुछ भी लाभ न होता देख अग्निवर्ण की रानियों ने एक आम उपाय निकाला। उन्होंने बनावटी प्रसन्नता प्रकट करके भाँति भाँति के उत्सव आरम्भ कर दिये। इस प्रकार, उत्सवों के बहाने, उन्होंने अग्निवर्ण का बाहर जाना बन्द कर दिया। उन्होंने कहा, लावो इस छली के साथ छल करके ही अपना काम निकालें। बात यह थी कि वे अपनी प्रेम-गर्विता सपत्नियों से वे बेहद रुष्ट थीं। इसी से उन्होंने इस प्रकार की धोखेबाज़ी से भी काम निकालना अनुचित न समझा।
रात भर तो वह न मालूम कहाँ रहता; प्रातःकाल घर आता। उस समय उसका रूप-रङ्ग देखते ही उसकी करतूत उसकी रानियों की समझ