कर और बाँयें घुटने को झुका कर धनुष पर बाण चढ़ाता और उसे कान तक खींचता था उस समय उसकी शोभा देखतेही बनती थी।
यथासमय सुदर्शन को नया यौवन प्राप्त हुआ—वह यौवन जो नारियों के नेत्रों को पीने के लिए शहद है, जो मनसिजरूपी वृक्ष का अनुरागरूपी कोमल-पल्लव-धारी फूल है, जो सारे शरीर का बिना गढ़ा हुआ गहना है, और जो भोग विलास का सर्वोत्तम साधन है।
सुदर्शन के युवा होने पर उसके मन्त्रियों ने सोचा कि अब राजा का विवाह करना चाहिए, जिसमें उसके विशुद्ध वंश की वृद्धि हो। अतएव उन्होंने सम्बन्ध करने योग्य राजाओं के यहाँ, चारों तरफ़, दूतियाँ भेज दीं। ढूँढ़ ढूँढ़ कर वे रूपवती राजकन्याओं के चित्र ले आईं। उनमें से कई एक को चुन कर मन्त्रियों ने सुदर्शन का विवाह उनसे कराया। विवाह हो जाने पर देखने से मालूम हुआ कि वे राजकुमारियाँ जैसी चित्रों में चित्रित की गई थीं उससे भी अधिक रूपवती थीं। उनके साथ विवाह करने के पहलेही नव-युवक सुदर्शन राजलक्ष्मी और पृथ्वी का पाणिग्रहण कर चुका था। अतएव सुदर्शन के राजमन्दिर में आने पर वे विवाहिता राजकन्यायें लक्ष्मी और पृथ्वी की सौत बन कर रहने लगीं।