रोने लगीं। उनका रोना और विलखना सुन कर वन में भी सर्वत्र रोना-धोना शुरू हो गया। पशु और पक्षी तक सीताजी के दुख से दुखी होकर विकल हो गये। मोरों ने नाच छोड़ दिया; पेड़ों ने डालियों से फूल फेंक दिये; हरिणियों ने मुँह में लिये हुए भी कुश के ग्रास उगल दिये। चारों ओर हा-हाकार मच गया।
व्याध के बाण से छिदे हुए क्रोञ्च नाम के पक्षी को देख कर जिन के हृदय का शोक, श्लोक के रूप में, बाहर निकल आया था वे—अर्थात् आदि-कवि वाल्मीकिजी—इस समय, कुश और ईंधन लेने के लिए, वन में विचर रहे थे। अकस्मात् उन्हें रोने की आवाज़ सुनाई दी। अतएव, उसका पता लगाने के लिए, जिधर से वह आ रही थी उधर ही को वे चल दिये और कुछ देर में सीताजी के सामने जाकर उपस्थित हुए। उन्हें देख कर सीताजी ने विलाप करना बन्द कर दिया और आँखों का अवरोध करने वाले आँसू पोंछ कर मुनिवर को प्रणाम किया। वाल्मीकि ने चिह्नों से जान लिया कि सीताजी गर्भवती हैं। अतएव, उन्होंने—"तेरे सुपुत्र हो"—यह कह कर आशीर्वाद दिया। फिर वे बोले:—
"मैंने ध्यान से जान लिया है कि झूठे लोकापवाद से कुपित होकर तेरे पति ने तुझे छोड़ दिया है। वैदेहि! तू सोच मत कर। तू ऐसा समझ कि तू अपने पिता ही के घर आई है। मेरा आश्रम दूसरी जगह है तो क्या हुआ, वह तेरे पिता ही के घर के सदृश है। यद्यपि, भरत के बड़े भाई ने तीनों लोकों के कण्टकरूपी रावण को मारा है; यद्यपि वह की हुई प्रतिज्ञा से चावल भर भी नहीं हटता—उसे पूरी करके ही छोड़ता है। और, यद्यपि अपने मुँह से वह कभी घमण्ड की बात नहीं निकालता—कभी अपने मुँह अपनी बड़ाई नहीं करता—तथापि यह मैं निःसन्देह कह सकता हूँ कि उसने तुझ पर अन्याय किया है। अतएव मैं उस पर अवश्य ही अप्रसन्न हूँ। तेरे यशस्वी ससुर से मेरी मित्रता थी। तेरा तत्त्व-ज्ञानी पिता, सदुपदेश-द्वारा, पण्डितों के भी सांसारिक आवागमन का मिटाने वाला है। और, स्वयं तू पतिव्रता स्त्रियों की शिरोमणि है। अतएव, सब तरह से तू मेरी कृपा का पात्र है। तेरे ससुर में, तेरे पिता में, और स्वयं तुझ में, एक भी बात ऐसी नहीं जिसके कारण मुझे, तुझ पर दया दिखाने में, सङ्कोच हो सके। तू मेरी सर्वथा दयनीय है। अतएव, तू मेरे तपोवन में आनन्द से रह। तपस्वियों के सत्सङ्ग से वहाँ के हिंसक पशुओं तक ने सुशीलता सीख ली है। वे भी हिल गये हैं। उन तक से तुझे कोई कष्ट न पहुँचेगा। तू निडर होकर वहाँ रह सकती है। बिना किसी विघ्न-बाधा के, सुखपूर्व्वक प्रसूति होने के अनन्तर, तेरी सन्तान के जातकर्म्म आदि सारे संस्कार, विधिवत्,