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रघुवंश।

भी आदर में उन्होंने न्यूनाधिकता नहीं होने दी। छः मुखों से दूध पी गई कृत्तिकाओं पर स्वामिकार्त्तिक के समान, तीनों माताओं पर रामचन्द्र ने एक सी वत्सलता प्रकट की।

रामचन्द्र ने अपनी प्रजा का पालन बहुत ही अच्छी तरह किया। लालच उनको छू तक न गया; इससे उनकी प्रजा धनाढ्य हो गई। विघ्नों से उत्पन्न हुए भय का नाश करने में उन्होंने सदा तत्परता दिखाई; इससे उनकी प्रजा धार्म्मिक हो गई—घर घर धर्म्मानुष्ठान होने लगे। नीति का अवलम्बन करके उन्होंने किसी को ज़रा भी सुमार्ग से न हटने दिया; इससे उनकी प्रजा उन्हें अपना पिता समझने लगी। प्रजा का दुख-दर्द दूर करके सबको उन्होंने सुखी कर दिया। इससे प्रजा उन्हें पुत्रवत् प्यार करने लगी। सारांश यह कि रामचन्द्र की प्रजा उन्हीं से धनवती, उन्हीं से क्रियावती, उन्हीं से पितृवती और उन्हीं से पुत्रवती हुई।

पुरवासियों का जो काम जिस समय करने को होता उसे रामचन्द्र उसी समय कर डालते। समय को वे कभी व्यर्थ न खोते। राज्य के काम काज करके जो समय बचता उसे वे सीता के साथ, एकान्त में बैठ कर, व्यतीत करते। सीता के रूप-लावण्य आदि की प्रशंसा नहीं हो सकती। रामचन्द्रजी के समागम का सुख लूटने के लिए, सीता का सुन्दर रूप धारण करके, मानों स्वयं लक्ष्मी ही उनके पास आ गई थी। रामचन्द्रजी के महल उत्तमोत्तम चित्रों से सजे हुए थे। दण्डकारण्य के प्राकृतिक दृश्यों और मुख्य मुख्य स्थानों के भी चित्र वहाँ थे। उन चित्रों को देख कर सीता के साथ बैठे हुए रामचन्द्र को दण्डक-वन की दुःखदायक बातें भी याद आ जाती थीं। परन्तु उनसे उन्हें दुःख के बदले सुख ही होता था।

प्रजा के काम से छुट्टी पाने पर, रामचन्द्रजी, सीता के साथ, इच्छापूर्वक, इन्द्रियों के विषय भोग करने लगे। इस प्रकार कुछ दिन बीत जाने पर सीता के मुख पर शर-नामक घास के रङ्ग का पीलापन दिखाई दिया। उनके नेत्र पहले से भी अधिक पानीदार, अतएव और भी सुन्दर, हो गये। सीता ने इन चिह्नों से, बिना मुँह से कहे ही, अपने गर्भवती होने की सूचना रामचन्द्र को कर दी। रामचन्द्र को सीता का हाल मालूम हो गया। अतएव उन्हें बड़ी खुशी हुई। वह रूप, उस समय, उनको बहुत ही अच्छा मालूम हुआ। धीरे धीर सीता का शरीर बहुत कृश हो गया। गर्भ धारण के चिह्न और भी स्पष्ट दिखाई देने लगे। अतएव उन्हें रामचन्द्रजी के सामने होने अथवा उनके पास बैठने में लज्जा मालूम होने लगी। परन्तु उनकी सलज्जता और गर्भ-स्थितिसूचक उनका शरीर देख कर रामचन्द्र को प्रसन्नता होती थी।