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रघुवंश।

में रहता है तब तक पतिव्रता स्त्रियाँ कंघी-चोटी नहीं करतीं; वे अपनी वेणी तक नहीं खोलतीं। अपने स्वामी रामचन्द्र के वनवासी होने से अयोध्यापुरी भी, पतिव्रता स्त्री की तरह, मानों अब तक वियोगिनी थी। इसीसे रामचन्द्र ने उसकी वेणी खोल कर उसके वियोगीपन का चिह्न दूर कर दिया।

जिस समय कर्णीरथ नाम के एक छोटे से सुसज्जित रथ पर सवार हुई सीताजी ने पुरी में प्रवेश किया उस समय अयोध्या की स्त्रियों ने, अपने अपने मकानों की खिड़कियों से, दोनों हाथ जोड़ जोड़ कर, उन्हें इस तरह खुल कर प्रणाम किया कि उनके हाथों की अँजुलियाँ बाहर वालों को भी साफ़ दिखाई दीं। सीताजी का उस समय का वेश बड़ा ही सुन्दर था। उनकी दोनों सासुओं ने, अपने हाथ से उनका शृङ्गार कर के, उन्हें अच्छे अच्छे कपड़े और गहने पहनाये थे। अनसूया का दिया हुआ उबटन उनके बदन पर लगा हुआ था। वह कान्तिमान् उबटन कभी ख़राब होनेवाला न था। उससे प्रभा का मण्डल निकल रहा था। सीताजी के चारों ओर फैले हुए उस प्रभा-मण्डल को देख कर यह मालूम होता था मानों रामचन्द्र ने उन्हें फिर आग के बीच में खड़ा करके अयोध्या को यह दिखाया है कि सीताजी सर्वथा शुद्ध हैं। अतएव, उनको ग्रहण करके मैंने कोई अनुचित काम नहीं किया।

रामचन्द्रजी मित्रों का सत्कार करना ख़ूब जानते थे। सौहार्द के तो वे सागरही थे। विभीषण, सुग्रीव और जाम्बुवान् आदि अपने मित्रों को, अच्छे अच्छे सजे हुए मकानों में ठहरा कर, और, उनके आराम का उत्तम प्रबन्ध करके वे पिता के पूजाघर में गये। वहाँ पिता के तो दर्शन उन्हें हुए नहीं। उनकी पूजा की सामग्री और चित्रमात्र वहाँ उन्हें देख पड़ा। घर के भीतर घुसते ही रामचन्द्र की आँखों से आँसू टपक पड़े। सामने कैकेयी को देख कर उन्होंने बड़ेही विनीत-भाव से कहा:—"माता! सत्य पर स्थिर रहने का फल स्वर्ग की प्राप्ति है। ऐसे कल्याणकारी सत्य से जो पिता नहीं डिगे, यह तुम्हारे ही पुण्य का प्रताप है। बार बार सोचने पर भी मुझे, तुम्हारे पुण्य के सिवा इसका और कोई कारण नहीं देख पड़ता। तुम्हारीही कृपा से उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई है"। रामचन्द्रजी के मुँह से यह सुन कर भरत की माता का सारा सङ्कोच दूर हो गया। अब तक कैकेयी अपनी करतूत पर लज्जित थी। पर रामचन्द्रजी के उदार वचन सुन कर उसकी सारी लज्जा जाती रही।

रामचन्द्र ने सुग्रीव और विभीषण आदि की सेवा-शुश्रूषा में ज़रा भी कसर न पड़ने दी। उन्होंने नाना प्रकार की कृत्रिम वस्तुओं से उनका