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रघुवंश।

का शीघ्र ही पालन कर दिया गया। अपने हाथ से इतना बड़ा पातक हो गया देख, राजा का हृदय दुःख और सन्ताप से अभिभूत हो उठा। उसका धीरज छूट गया। अपने नाश के हेतुभूत उस शाप को वह—बड़वानल धारण किये हुए समुद्र के समान—हृदय में लिये हुए अपनी राजधानी को लौट आया।