अब ज़रा नई मञ्जरी से लदी हुई आम की लता का हाल सुनिए। मलयाचल से आई हुई वायु के झोंकों से उसके पत्ते जो हिलने लगे तो ऐसा मालूम होने लगा जैसे वह अपने हाथ हिला हिला कर, नर्त्तकी की तरह, भाव बताने का अभ्यास कर रही हो। औरों की तो बात ही नहीं, उसने अपने इन हाव-भावों से रागद्वेष और काम-कल्लोल जीते हुए जनों का भी मन मतवाला कर दिया।
सुगन्धित और प्रफुल्लित वनों तथा उपवनों में, अब, कोयलों की पहली कूक—नवोढा नायिकाओं के मित भाषण की तरह—ठहर ठहर कर, थोड़ी थोड़ी, सुनाई देने लगी।
उपवनों के किनारेवाली लताओं पर भी वसन्त का असर पड़ा। भौँरों की कर्ण-मधुर गुञ्जारों के बहाने गीत सी गाती हुई, खिले हुए फूलों के बहाने दाँतों की मनोहर द्युति सी दिखलाती हुई, और पवन के हिलाये हुए पत्तों के बहाने हाथों से भाव सी बताती हुई वे बहुत ही अच्छी मालूम होने लगीं। उनकी शोभा और सुन्दरता बेहद बढ़ गई।
जब कोयलों, भ्रमरों और वृक्ष-लतादिकों को भी वसन्त ने कुछ का कुछ कर डाला तब मनुष्यों की क्या कथा है? उनकी उमङ्गों की तो सीमा ही न रही। पति-पत्नियों ने ख़ूब ही मद्य पिया—वह मद्य जो अपनी सुगन्धि से वकुल के फूलों की सुगन्धि को भी जीत लेता है, हास-विलास कराने में जो अपना सानी नहीं रखता और परस्पर का प्रेम अटल होने में जो ज़रा भी विघ्न नहीं आने देता।
घर की बावड़ियों में कमल के फूल छा गये। मतवालेपन के कारण बहुत ही मधुर आलाप करनेवाले जलचर पक्षी उनमें कलोलें करने लगे। कमल के फूलों और कलरव करनेवाले पक्षियों से इन बावड़ियों की शोभा बहुत ही मनोहारिणी हो गई। वे उन स्त्रियों की उपमा को पहुँच गईं जिनके मुखमण्डलों की सुन्दरता, मन्द मन्द मुसकान के कारण, अधिक हो गई है और, जिनकी कमर की करधनियाँ ढीली हो जाने के कारण, ख़ूब बज रही हैं।
बेचारी रजनी-वधू को वसन्त ने खण्डिता बना दिया। उसका चन्द्रमा-रूपी मुख पीला पड़ गया। पति के संयोग-सुख से वञ्चित हुई खण्डिका नायिका के समान वह भी, दिन पर दिन, क्षीण होती चली गई—जैसे जैसे दिन बढ़ता गया, वैसे ही वैसे वह छोटी होती गई।
परिश्रम का परिहार करनेवाली चन्द्रमा की किरणों की छटा, तुषार-वृष्टि बन्द हो जाने के कारण, पहले से अधिक उज्ज्वल हो गई। अपने मित्र