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नवाँ सर्ग।

जीत की घोषणा उसने सब कहीं कर दी। सेना-समूह के कारण दशरथ के विजय की ख़बर लोगों को जल्दी हो गई। बस, और कुछ नहीं। दशरथ का रथ बड़ा ही अद्भुत था। उसकी बनावट ऐसी थी कि उसके भीतर बैठने वाले को सामने भी खड़े हुए शत्रु न देख सकते थे। हाथ में धनुष लेकर और इसी रथ पर सवार होकर, कुबेर के समान सम्पत्तिशाली दशरथ ने समुद्र पर्य्यन्त फैली हुई पृथ्वी सहज ही जीत ली। विजय करते करते, समुद्र तट पर पहुँचने पर, बादलों की तरह घोर गर्जना करने वाले समुद्र ही उसकी जीत के नगाड़े बन गये। दशरथ को वहाँ विजय-दुन्दुभी बजाने की आवश्यकता ही न हुई। समुद्र की मेघ गम्भीर ध्वनि से ही दुन्दुभी का काम निकल गया। इन्द्र ने पहाड़ों के पक्ष-बल का नाश अपने हज़ार धारवाले वज्र से किया था, परन्तु नये कमल के समान मुखवाले दशरथ ने शत्रुओं के पक्ष-बल का नाश अपने टङ्कारकारी बाग-वर्षी धनुष ही से कर दिया। अतएव यह कहना चाहिए कि बल में यदि वह इन्द्र से अधिक न था तो कम भी न था। उसका सामना करने वाले राजाओं में से एक से भी उसके पौरुष का खण्डन न हो सका। सभी ने उससे हार खाई। हज़ारों नरपाल परास्त हो होकर, उस अखण्ड-पराक्रमी राजा के पास आकर उपस्थित हुए, और, देवता लोग जिस तरह इन्द्र के सामने अपने मस्तक झुकाते हैं उसी तरह उन्होंने भी राजा दशरथ के सामने अपने अपने मस्तक झुकाये। उस समय उनके मुकुटों पर जड़े हुए रत्नों की किरणें, दशरथ के पैरों पर पड़ कर, उन्हें चूमने लगीं। ऐसा करते समय, उन किरणों का संयोग जो राजा दशरथ के पैरों के नखों की कान्ति के साथ हुआ तो उनकी चमक और भी अधिक होगई।

दशरथ से शत्रुता करने वाले हज़ारों राजाओं की रानियाँ विधवा हो गईं। उन बेचारियों का बाल-गूँथना और शृङ्गार करना बन्द हो गया। उन्होंने अपने छोटे छोटे कुमारों को, अपने मन्त्रियों के साथ, राजा दशरथ की शरण में भेजा। मन्त्रियों ने उनके हाथों की अञ्जली बाँध कर उन्हें राजा के सामने खड़ा किया। राजा को उन अल्पवयस्क राजकुमारों और उनकी माताओं पर दया आई। अतएव उन्हें अभयदान देकर वह महासागर के किनारे से आगे न बढ़ा और अलकापुरी के सदृश समृद्धिशालिनी अपनी राजधानी को लौट आया।

समुद्र-तट तक के राजाओं को जीत कर यद्यपि वह चक्रवर्ती राजा हो गया, यद्यपि उसके एक-च्छत्र राजा हो जाने से और किसी राजा को अपने ऊपर सफ़ेद छत्र धारण करने का अधिकार न रहा, और कान्ति में यद्यपि वह अग्नि और चन्द्रमा की बराबरी करने लगा, तथापि उसने आलस्य