नवाँ सर्ग।
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दशरथ का राज्यशासन, वसन्तोत्सव और आखेट।
दशरथ बड़ा ही प्रतापी राजा हुआ। रथ पर सवार होकर युद्ध करने वाले पराक्रमी पुरुषों में से कोई भी उसकी बराबरी न कर सका। योग-साधन द्वारा उसने अपनी इन्द्रियों तक को जीत लिया। अतएव राजाओं में ही उसने श्रेष्ठता न प्राप्त की, योगियों में भी उसने सर्वोच्च आसन पाया। पिता की मृत्यु के अनन्तर उत्तर-कोसल का राज्य पाकर, योग्यतापूर्वक वह उसका शासन करने लगा। क्रौञ्चनामक पर्वत के तोड़ने वाले कुमार कार्तिकेय के समान तेजस्वी दशरथ ने, पिता से राज्य पाकर, अपनी राजधानी ही का नहीं, किन्तु सारे प्रजामण्डल का पालन इतनी अच्छी तरह किया कि सब कहीं पहले की भी अपेक्षा अधिक सुख-समृद्धि विराजने लगी। विधिपूर्वक प्रजापालन करने से उसकी प्रजा उसमें अत्यन्त अनुरक्त हो गई। वह सब का प्यारा हो गया। विद्वानों की सम्मति है कि त्रिलोक में दो ही पुरुष ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपना अपना काम करने वालों के श्रम को दूर करने के लिए समय पर पानी और धन-मान आदि की वर्षा की है। एक तो बल-नामक दैत्य का संहार करने वाला इन्द्र, दूसरा मनु का वंशधर राजा दशरथ। पहले ने तो यथासमय जल बरसा कर सुकर्म्म करने वालों का श्रम सफल किया और दूसरे ने यथासमय उपहार और पुरस्कार आदि देकर। मतलब यह कि दशरथ ने अच्छा काम करने वालों का सदा ही आदर किया और ख़िलतें तथा जागीरें आदि देकर उन्हें मालामाल कर दिया।
अज-नन्दन दशरथ बड़ा ही शान्तचित्त राजा था। तेजस्वी भी वह ऐसा वैसा न था, तेजस्विता में वह देवताओं की बराबरी का था। उसके शान्तिपूर्ण राज्य में पेड़-पौधे फलों और फूलों से लद गये। पृथ्वी पहले से भी अधिक अन्न उत्पन्न करने लगी। देश में रोग का कहीं चिह्न तक न रह गया। वैरियों से भयभीत होने का तो नाम ही न लीजिए। दसों