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रघुवंश।

करने के लिए बहुत ही उतावला हो रहा था। इसी से उसने प्रेमपूर्वक मृत्यु का आह्वान किया।

तब तक कुमार दशरथ ने शास्त्रों का अभ्यास भी कर लिया और युद्ध-विद्या भी अच्छी तरह सीख ली। शस्त्रास्त्रों से सज कर वह कवच धारण करने योग्य हो गया। अतएव पुत्र को समर्थ देख कर अज ने उसे विधिपूर्वक प्रजापालन करने की आज्ञा दी—उसने अपना राज्य पुत्र को सौंप दिया। तदनन्तर, अपने शरीर को रोग का बुरा घर समझ कर, उसमें और अधिक दिन तक न रहने की इच्छा से उसने अन्न खाना छोड़ दिया—अनशन-व्रत धारण कर लिया। इस तरह, कुछ दिन बाद, गङ्गा और सरयू के सङ्गम-तीर्थ में अज का शरीर छूट गया। इस तीर्थ में मरने का फल यह हुआ कि मरने के साथ, तत्काल ही, वह देवता हो गया; और, नन्दन-वन के विलास-भवनों में, पहले से भी अधिक सुन्दर शरीर वाली कामिनी के साथ फिर वह विहार करने लगा।