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सातवाँ सर्ग।

अपने हाथ पर रखने से अज की शोभा भी अत्यधिक बढ़ गई। उस समय का वह दृश्य बहुतही हृदयहारी हो गया। वर का हाथ कण्टकित हो उठा—उस पर रोमाञ्च हो आया। वधू की उँगलियाँ भी पसीने से तर हो गईं। उन दोनों के हाथों का इस तरह सात्त्विक-भाव-दर्शक परस्पर-मिलाप होने पर यह मालूम होने लगा जैसे प्रेम-देवता ने अपनी वृत्ति उन्हें एकसी बाँट दी हो। उन दोनों के मन में एक दूसरे के विषय में जो प्रीति थी वह काँटे में तुली हुई सी जान पड़ी। न किसी में रत्ती भर कम, न रत्ती भर अधिक। उस समय वे दोनों एक दूसरे को कनखियों देखने की चेष्टा करने लगे; परन्तु, उनमें से एक भी यह न चाहता था कि यह बात दूसरे को मालूम हो जाय। यदि भूल से उनकी आँखें आमने सामने हो जाती थीं तो तुरन्तही वे उन्हें नीची कर लेते थे। तिस पर भी एक दूसरे को देखने की लालसा उनमें, उस समय, इतनी बलवती हो रही थी कि फिर भी वे अपनी चेष्टा से विरत न होते थे। अतएव लज्जा और लालसा के झूले में झूलने वाली उनकी आँखों की तत्कालीन मनोहरता देखने ही योग्य थी। कन्यादान हो चुकने पर वे दोनों, वधू-वर, प्रज्वलित अग्नि की प्रदक्षिणा करने लगे। उस समय—सुमेरु-पर्वत के आस पास फिरते हुए, अतएव एक दूसरे में मिल से गये दिन-रात की तरह—वे मालूम होने लगे। प्रदक्षिणा हो चुकने पर, राजा भोज के विधाता-तुल्य पुरोहित ने इन्दुमती को हवन करने की आज्ञा दी। तब बड़े बड़े नितम्बों वाली इन्दुमती ने धान की खीलें अग्नि में, लजाते हुए, डालीं। उस समय हवन का धुवाँ लगने से उसकी आँखें लाल हो गईं। इससे वे मतवाले चकोर पक्षी की आँखों की तरह मालूम होने लगीं। खीलें, शमी-वृक्ष की समिधा और घी आदि पदार्थो की आहुतियाँ हवन-कुण्ड में पड़ते ही अग्नि से उठे हुए पवित्र धुएँ की शिखा इन्दुमती के कपोलों पर छा गई। अतएव, ज़रा देर के लिए, वह इन्दुमती के कानों पर रक्खी हुई नीलकमल की कली की समानता का पहुँच गई—ऐसा मालूम होने लगा कि इन्दुमती के कानों के आस पास धुआँ नहीं छाया, किन्तु नीले कमल का गहना उसने कानों में धारण किया है। वैवाहिक हवन का धुवाँ लगने से वधू के मुख-कमल की शोभा कुछ और ही हो गई। उसकी आँखें आकुल हो उठीं—उनसे काजल मिले हुए काले काले आँसू टपकने लगे, कानों में यवाङ्कर के गहने जो वह पहने हुए थी वे कुम्हला गये, और उसके कपोल लाल हो गये। इसके अनन्तर सोने के सिंहासन पर बैठे हुए वर और वधू के सिर पर (रोचनारञ्जित) गीले अक्षत डाले गये। पहले स्नातक गृहस्थों ने अक्षत डाले, फिर बन्धु-बान्धवों सहित राजा ने, फिर पति-पुत्रवती पुरवासिनी स्त्रियों ने।