हूँढे जायँ तो ऐसे और भी कितने ही शब्द और श्लोक मिल सकते हैं।
परन्तु उनके दूसरे अर्थ की कोई सङ्गति नहीं हो सकती।
जबसे हानले आदि ने यह नई युक्ति निकाली तब से कालिदास के
स्थिति-काल-निर्णायक लेखों का तूफ़ान सा आगया है । इसी युक्ति के आधार
पर लोग आकाश-पाताल एक कर रहे हैं । कोई कहता है कि कालिदास
द्वितीय चन्द्रगुप्त के समय में थे; कोई कहता है कुमारगुप्त के समय में थे,
कोई कहता है स्कन्दगुप्त के समय में थे; कोई कहता है यशोधा के समय
में थे। इसी पिछले राजा ने हूण-नरेश मिहिरगुल को, ५३२ ईसवी में, मुल-
तान के पास कोरूर में परास्त करके हूणां को सदा के लिए भारत से
निकाल दिया। इसी विजय के उपलक्ष्य में वह शकारि विक्रमादित्य कह-
लाया । इस विषय में, आगे और कुछ लिखने के पहले, मुख्य मुख्य गुप्त-
राजाओं की नामावली और उनका शासनकाल लिख देना अच्छा होगा।
इससे पाठकों को पूर्वोक्त पण्डितों की युक्तियाँ समझने में सुभीता होगा।
अच्छा अब इनके नाम आदि सुनिएः-
(१) चन्द्रगुप्त, प्रथम, ( विकमादित्य ) मृत्यु ३२६ ईसवी
(२) समुद्रगुप्त-शासन-काल ३२६-से ३७५ ईसवी तक
(३) चन्द्रगुप्त, द्वितीय, ( विक्रमादित्य ) शासन-काल ३७५ से ४१३
ईसवी तक
(४) कुमारगुप्त, प्रथम ।
शासन-काल ४१३ से ४८० ईसवी तक
(५) स्कन्दगुप्त
(६) नरसिंह गुप्त
(७) यशोधर्मा (विक्रमादित्य) शासनकाल ईसा की पांचवीं
शताब्दी के अन्त से छठी शताब्दी के प्रथमार्द्ध तक। .
इनमें से पहले ६ राजाओं की राजधानी पुष्पपुर या पटना थी। पर
अन्तिम राजा यशोधा की राजधानी उज्जेन थी। यह पिछला राजा गुप्त
राजाओं का करद राजा था । पर गुप्तों की शक्ति क्षीण होने पर यह स्वतन्त्र
हो गया था। इन राजाओं में से तीन राजाओं ने-पहले, तीसरे और सातवें
ने-विक्रमादित्य की पदवी ग्रहण की थी । ये राजा बड़े प्रतापी थे। इसी से
ये विक्रमादित्य उपनाम से अभिहित हुए।
परन्तु डाकर हार्नले आदि की पूर्वोक्त युक्तियों के आविष्कार-विषय में
एक झगड़ा है । बाबू बी० सी० मजूमदार कहते हैं कि इसका यश मुझे