में लालटैन लेकर जब कोई रात को किसी चौड़ी सड़क पर चलता है तब जैसे जैसे वह आगे बढ़ता जाता है वैसे ही वैसे सड़क पर ऊँचे उठे हुए पुश्ते, जिन्हें वह छोड़ता जाता है, अँधेरे में छिपते चले जाते हैं। ठीक उसी तरह, जिस जिस राजा को छोड़ कर पतिंवरा इन्दुमती आगे बढ़ती गई उस उसका मुँह धुँवा होता चला गया। उस उसके चेहरे पर अन्धकार के सदृश कालिमा छाती हुई चली गई।
जब वह अजकुमार के पास पहुँची तब यह सोच कर कि मुझसे यह विवाह करेगी या नहीं, उसका चित्त चिन्ता से आकुल हो उठा। इतने ही में उसकी दाहनी भुजा इस ज़ोर से फ़ड़की कि उस पर बँधे हुए भुजबन्द का बन्धन ढीला पड़ गया। इस शकुन ने अज के सन्देह को दूर कर दिया। उसे विश्वास हो गया कि इन्दुमती अवश्य ही मेरे गले में वरमाला पहनावेगी। अज बहुत ही रूपवान् राजकुमार था। उसका प्रत्येक अवयव सुन्दरता की खान था। उसके किसी अङ्ग में दोष का लवलेश भी न था। इस कारण, अज के सौन्दर्य पर इन्दुमती मोहित हो गई। अतएव, और किसी राजा के पास जाकर उसे देखने की इच्छा को उसने अपने हृदय से एक दम दूर कर दिया। ठीक ही है। फूले हुए आम के पेड़ पर पहुँच कर, भौंरों की भीड़ फिर और किसी पेड़ पर जाने की इच्छा नहीं करती।
बोलने में सुनन्दा बड़ी ही प्रवीण थी। चतुर भी वह एक ही थी। इससे वह झट ताड़ गई कि चन्द्रमा के समान कान्तिवाली चन्द्रवदनी इन्दुमती का चित्त अजकुमार के सौन्दर्य-सागर में मग्न हो गया है। अतएव वह अज का वर्णन, बड़े विस्तार के साथ, इन्दुमती को सुनाने लगी। वह बोली:—
"इक्ष्वाकु के कुल में ककुत्स्थ नाम का एक गजा हो गया है। वह अपने समय के सारे राजाओं में श्रेष्ठ था। गुणवान् भी वह सब राजाओं से अधिक था। तबसे, उसी के नामानुसार, उत्तर कोसल के सभी उदाराशय राजा काकुत्स्थ कहलाते हैं। इस संज्ञा—इस पदवी—को बड़े मोल की चीज़ समझ कर वे इसे बराबर धारण करते चले आ रहे हैं। देवासुर-सङ्ग्राम के समय एक दफ़े इन्द्र ने राजा ककुत्स्थ से सहायता माँगी। ककुत्स्थ ने कहा—"तुम बैल बन कर अपनी पीठ पर मुझे सवार होने दो तो मैं तुम्हारी सहायता करने को तैयार हूँ। मेरे लिए और कोई वाहन सुभीते का नहीं। और से मेरा तेज सहन भी न होगा। इन्द्र ने इस बात को मान लिया। वह बैल बना और ककुत्स्थ उस पर सवार हुआ। उस समय वह साक्षात् वृषभवाहन शङ्कर के समान मालूम होने लगा। उसने, युद्ध में, अपने बाणों से अनन्त दैत्यों का नाश करके साथही उनकी स्त्रियों के कपालों पर बने हुए