निष्कलङ्क व्यवहार के कारण दोनों कुल एक से उजियाले थे। उसकी कीर्ति इसी लोक में नहीं, किन्तु स्वर्ग और पाताल तक में गाई जाती थी। ऐसे अलौकिक राजा सुषेण की तरफ़ उँगली उठा कर इन्दुमती से सुनन्दा इस तरह कहने लगी:—
"यह राजा नीप नाम के वंश में उत्पन्न हुआ है। इसने न मालूम आज तक कितने यज्ञ कर डाले हैं। विद्या, विनय, क्षमा, करता आदि गुणों ने इसका आसरा पाकर अपना परस्पर का स्वाभाविक विरोध इस तरह छोड़ दिया है जिस तरह कि सिंह और हाथी, व्याघ्र और गाय आदि प्राणी, किसी सिद्ध पुरुष के शान्त और रमणीय आश्रम के पास आकर, अपना स्वाभाविक वैरभाव छोड़ देते हैं। चन्द्रमा की किरणों के समान आँखों को आनन्द देने वाली इसकी कीर्ति तो इसके निज के महलों में चारों तरफ़ फैली हुई देख पड़ती है, और इसका असह्य तेज इसके शत्रुओं के नगरों के भीतर उन ऊँचे ऊँचे मकानों में, जिनकी छतों पर घास उग रही है, चमकता हुआ देख पड़ता है। आत्मीय जनों को तो इससे सर्वोत्तम सुख मिलता है, और, शत्रुओं को प्रचण्ड पीड़ा पहुँचती है। यह इसके पराक्रम ही का परिणाम है जो इसके शत्रुओं के नगर उजड़ गये हैं और उनके ऊँचे ऊँचे मकानों के आँगनों तथा अटारियों में घास खड़ी है। इसकी राजधानी यमुना के तट पर है। इससे इसकी रानियाँ बहुधा उसमें जल-विहार किया करती हैं। उस समय उनके शरीर पर लगा हुआ सफ़ेद चन्दन धुल कर यमुना-जल में मिल जाता है। तब एक विचित्र दृश्य देखने को मिलता है। गङ्गा और यमुना का सङ्गम प्रयाग में हुआ है और मथुरा से प्रयाग सैकड़ों कोस दूर है। परन्तु, उस समय, मथुरा की यमुना, प्रयाग की गङ्गा सी बन जाती है। गङ्गा का जो दृश्य प्रयाग में देख पड़ता है वही दृश्य इस राजा की रानियों के जल-विहार के प्रभाव से मथुरा में उपस्थित हो जाता है। गरुड़ से डरा हुआ कालियनाग, अपने बचने का और कोई उपाय न देख, इसकी राजधानी के पास ही, यमुना के भीतर, रहता है और यह उसकी रक्षा करता है। इसी कालिय ने इसे एक अनमोल मणि दी है। उसी देदीप्यमान मणि को यह, इस समय भी, अपने हृदय पर धारण किये हुए है। मुझे तो ऐसा जान पड़ता है कि उसे पहन कर यह कौस्तुभ-मणि धारण करने वाले विष्णु भगवान् को लज्जित सा कर रहा है। हे सुन्दरी! इस तरुण राजा को अपना पति बना कर, कुबेर के उद्यान के तुल्य इसके वृन्दावन-नामक उद्यान में, कोमल पत्तों की सेज पर फूल बिछा कर तू आनन्दपूर्वक अपने यौवन को सफल कर सकती है; और, जल के कणों से सींची हुई तथा शिलाजीत की सुगन्धि से सुगन्धित शिलाओं पर बैठ