कार्तवीर्य्य राजा के वंश में उत्पन्न हुआ है। लक्ष्मी पर यह दोष लगाया जाता है कि वह स्वभाव ही से चञ्चल है; कभी किसी के पास स्थिर होकर नहीं रहती। उसकी इस दुष्कीर्ति के धब्बे को इस राजा ने साफ़ धो डाला है। बात यह है कि लक्ष्मी अपने चञ्चल स्वभाव के कारण किसी को नहीं छोड़ती, किन्तु अपने आश्रय-दाता में दोष देख कर ही, विवश होकर, उसे छोड़ देती है। यह बात इस राजा के उदाहरण से निर्भ्रान्त सिद्ध होती है। इसमें एक भी दोष नहीं। इसी से, जिस दिन से लक्ष्मी ने इसका आश्रय लिया है उस दिन से आज तक इसे छोड़ कर जाने का विचार तक कभी उसने नहीं किया। विश्व-विख्यात परशुराम के कुठार की तेज़ धार क्षत्रियों के लिए कालरात्रि के समान थी। उसकी सहायता से उन्होंने एक नहीं, अनेक बार, क्षत्रियों का संहार कर डाला। परन्तु युद्ध में अग्नि की सहायता प्राप्त करके यह राजा परशुराम के परशु की उस तीक्ष्ण धार की भी कुछ परवा नहीं करता। उसे तो यह कमल के पत्ते के समान कोमल समझता है। अग्नि इसके वश में है। इसकी इच्छा होते ही वह इसके शत्रुओं को, युद्ध के मैदान में, जला कर ख़ाक कर देता है। जिसे इस पर विश्वास न हो वह महाभारत खोल कर देख सकता है। फिर भला यह परशुराम के परशु को कमल के पत्ते के समान कोमल क्यों न समझे? माहिष्मती नगरी इसकी राजधानी है। वहीं इसका किला है। वह माहिष्मती के नितम्ब के समान शोभा पाता है। जलों के प्रवाह से बहुत ही रमणीय मालूम होने वाली नर्म्मदा नदी उस क़िलेरूपी नितम्ब पर करधनी के समान जान पड़ती है। इसके महलों की खिड़कियों में बैठ कर यदि तू ऐसी मनोहारिणी नर्म्मदा का दृश्य देखना चाहे तो, खुशी से, इस लम्बी लम्बी भुजाओं वाले राजा के अङ्ग की शोभा बढ़ा सकती है—इसकी अर्धाङ्गिनी हो सकती है"।
वर्षा-ऋतु में बादल चन्द्रमा को ढके रहते है। परन्तु शरत्काल आते ही वे तितर बितर हो जाते हैं; उनका आवरण दूर हो जाता है। इससे चन्द्रमा, आकाश में, अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण हुआ दिखाई देता है और सारे संसार की आनन्द-वृद्धि का कारण होता है। तथापि ऐसा भी सर्वकलासम्पन्न चन्द्रबिम्ब जिस तरह सूर्य्य-विकासिनी कमलिनी को पसन्द नहीं आता, उसी तरह, यह राजा, अत्यन्त रूपवान् और सारी कलाओं में पारङ्गत होने पर भी, इन्दुमती को पसन्द न आया।
तब वह द्वारपालिका शूरसेन (मथुरा-प्रान्त) के राजा सुषेण के समीप इन्दुमती को ले गई। इस राजा का आचरण बहुत ही शुद्ध था। वह अपनी माता और अपने पिता, दोनों, के कुलों का दीपक था—उसके