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कालिदास का समय


काश्मीर पर शासन करने के लिए भेजे गये मातृगुप्त ही का दूसरा नाम कालिदास था । अतएव उनका स्थिति-काल ईसा की छठी सदी है। दक्षिण के श्रीयुत पण्डित के० बी० पाठक ने भी कालिदास का यही समय निश्चित किया है । डाकर फ्लीट, डाकर फगुसन, मिस्टर आर० सी० दत्त और पण्डित हरप्रसाद शास्त्री भी इस निश्चय या अनुमान के पृष्ठपोषक है ।

इसी तरह धीर भी कितने ही विद्वानों ने कालिदास के विषय में लेख लिखे हैं और अपनी अपनी तर्कना के अनुसार अपना अपना निश्चय सर्व-साधारण के सम्मुख रक्खा है । कालिदास के समय के विषय में कोई ऐतिहासिक आधार तो है नहीं। उनके कायों की भाषा-प्रणाली, उनमें जिन ऐतिहासिक पुरुषों का उल्लेख है उनके स्थिति-समय, और जिन पारवर्ती कवियों ने कालिदास के ग्रन्थों के हवाले या उनसे अवतरा दिये हैं उनके जीवनकाल के आधार पर ही कालिदास के समय का निर्णय विद्वानों को करना पड़ता है । इसमें अनुमान ही की मात्रा अधिक रहती है। अत- एव जब तक और कोई पका प्रमाण नहीं मिलता, अथवा जब तक किसी का अनुमान औरों से अधिक युक्ति-सङ्कत नहीं होता, तब तक विद्वजन इस तरह के अनुमानों से भी तथ्य संग्रह करना अनुचित नहीं समझते।

दो तीन वर्ष पहले, विशेष करके १९०९ ईसवी में, लन्दन की रायल एशियाटिक सोसायटी के जर्नल में डाकर हानले, मिस्टर विन्सेन्ट स्मिथ आदि कई विद्वानों ने कालिदास के स्थिति-काल के सम्बन्ध में कई बड़े ही गवेषणा-पूर्ण लेख लिखे । इन लेखों में कुछ नई युक्तियाँ दिखाई गई। डाकर हानले आदि ने और पीर बात के सिवा रघुवंश से कुछ पद्य ऐसे उद्धृत किये जिनमें 'स्कन्द', 'कुमार', 'समुद्र' आदि शब्द पाये जाते हैं । यथाः (१) आसमुद्रक्षितीशानां- (२) आकुमारकथाद्घातं- (३) स्कन्देन साक्षादिव देवसेना- यहाँ 'स्कन्द' से उन्होंने स्कन्दगुप्त, 'कुमार' से कुमारगुप्त और 'समुद्र' से समुद्रगुप्त का भी अर्थ निकाला । उन्होंने कहा कि ये लिष्ट पद हैं, अतएव द्वर्थिक है-इनसे दो दो अर्थ निकलते हैं । एक तो साधारगा, दूसरा असाधारण जो गुप्त राजाओं का सूचक है । इस पर सम्भलपुर के एक बङ्गाली विद्वान्, बी० सी० मजूमदार महाशय, ने इन लोगों की बड़ी हँसी उड़ाई । उन्होंने दिखलाया कि यदि इस तरह के दो दो अर्थ वाले श्लोक