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रघुवंश।

रह गया। वे लोग काठ की तरह निश्चल-भाव से अपने आसनों पर बैठे हुए उसे देखने लगे। कुछ देर बाद, जब उनका चित्त ठिकाने हुआ तब, उन्होंने अनुराग-सूचक इशारों के द्वारा इन्दुमती का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहा। उन्होंने मन में कहा:—लावो, तब तक, अपने मन का अभिलाष प्रकट करने के लिए, शृङ्गारिक चेष्टाओं से ही दूती का काम लें। यदि हम लोग कमल के फूल, हाथ की उँगलियाँ और गले में पड़ी हुई मुक्ता-माला आदि को, पेड़ों के कोमल पल्लवों की तरह, हिला डुला कर इन्दुमती को यह सूचित करें कि हम लोग तुझे पाने की हृदय से इच्छा रखते हैं तो बहुत अच्छा हो। प्रीति-सम्पादन करने के लिए इससे बढ़ कर और कोई बात ही नहीं। इस निश्चय को उन्होंने शीघ्र ही कार्य्य में परिणत करके दिखाना प्रारम्भ कर दिया।

एक राजा के हाथ में कमल का नाल-सहित एक फूल था। क्रीड़ा के लिए योंही उसने उसे हाथ में रख छोड़ा था। नाल को दोनों हाथों से पकड़ कर वह उसे घुमाने—चक्कर देने—लगा। ऐसा करने से फूल के पराग का भीतर ही भीतर एक गोल मण्डल बन गया और चञ्चल पंखुड़ियों की मार पड़ने से आस पास मँडराने वाले, सुगन्धि के लोभी, भौंरे दूर उड़ गये। यह तमाशा उसने इन्दुमती का मन अपने ऊपर अनुरक्त करने के लिए किया। परन्तु फल इसका उलटा हुआ। इन्दुमती ने उसके इस काम को एक प्रकार का कुलक्षण समझा। उसने सोचाः—जान पड़ता है, इसे व्यर्थ हाथ हिलाने की आदत सी है। अतएव, यह मेरा पति होने योग्य नहीं।

एक और राजा बहुत ही छैल-छबीला बना हुआ बैठा था। उसके कन्धे पर पड़ा हुआ दुशाला अपनी जगह से ज़रा खिसक गया था। इस कारण उसका एक छोर, रत्न जड़े हुए उसके भुजबन्द से, बार बार उलझ जाता था। इन्दुमती पर अपना अनुराग प्रकट करने के लिए उसे यह अच्छा बहाना मिला। अतएव, पहले तो उसने उस उलझे हुए छोर को छुड़ाया, फिर, अपना मनोमोहक मुख ज़रा टेढ़ा करके, बड़े ही हाव-भाव के साथ, उसने दुशाले को अपने कन्धे पर अच्छी तरह सँभाल कर रक्खा। इस लीला से उसका चाहे जो अभिप्राय रहा हो, पर इन्दुमती ने इससे यह अर्थ निकाला कि इसके शरीर में कोई दोष जान पड़ता है। उसी को अपने दुशाले से छिपाने का यह यत्न कर रहा है।

एक राजा को कुछ और ही सूझी। उसने अपनी आँखें ज़रा टेढ़ी करके, कटाक्षपूर्ण दृष्टि से, नीचे की तरफ़ देखा। फिर, उसने अपने एक पैर की उँगलियाँ सिकोड़ ली। इससे उन उँगलियों के नखों की आभा