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रघुवंश।

लाल लाल कोमल पत्तों पर पड़े हुए, अनमोल हार के गोल गोल मोतियों के समान स्वच्छ, ओस के कणों का दृश्य भी तो देखिए। आपके अरुणिमामय अधरों पर स्थान पाने और आपके दाँतों की शुभ्रकान्ति से मिलाप होने से और भी अधिक सुन्दरता को पाने वाली, आपकी लीला—मधुर मन्द मुसकान की तरह, ओस के ये बूँद, इस समय, बहुत ही शोभायमान हो रहे हैं।

"तेजोनिधि भगवान् सूर्य्यनारायण का अभी तक उदय भी नहीं हुआ कि इतने ही में अरुणोदय ने शीघ्रही सारे अन्धकार का नाश कर डाला। वीरवर अज, आप ही कहिए, युद्ध में जब आप आगे बढ़ते हैं तब क्या कभी आपके पिता को भी शत्रु-नाश करने का परिश्रम उठाना पड़ता है? कदापि नहीं। योग्य पुरुष को काम सौंप देने पर स्वामी के लिए स्वयं कुछ भी करना बाकी नहीं रह जाता।

"सारी रात, कभी इस करवट कभी उस करवट सोकर, देखिए, आपके हाथी भी अब जाग पड़े हैं और 'खनखन' बजती हुई ज़ँजीरों को खींच रहे हैं। बालसूर्य्य की धूप पड़ने से इनके दाँत, इस समय, ऐसे मालूम हो रहे हैं जैसे कि ये हाथी किसी पहाड़ के गेरू-भरे हुए तटों को अभी अपने दाँतों से तोड़े चले आ रहे हों। इनके दाँतों पर पड़ी हुई धूप गेरूही की तरह चमक रही है। हाथियों ही की नहीं, आपके घोड़ों की भी नींद खुल गई है। हे कमल-लोचन! देखिए, बड़े बड़े तम्बुओं के भीतर बँधे हुए आपके ये ईरानी घोड़े, आगे पड़े हुए सेंधा नमक के टुकड़े चाट चाट कर, अपने मुँह की उष्णा भाफ से उन्हें मैला कर रहे हैं। उपहार में आये हुए फूलों के जो हार आप कण्ठ में धारण किये हुए हैं उनके फूल भी इस समय बेहद कुम्हला गये हैं। पहले वे ख़ूब घने थे, पर अब कुम्हला जाने के कारण, दूर दूर हो गये हैं। आपके शय्यागार के ये दीपक भी, किरण-मण्डल के न रहने से, निस्तेज हो रहे हैं। आपके इस मधुरभाषी तोते को भी सोते से उठे बड़ी देर हुई। देखिए, आपको जगाने के लिए हम लोग जो स्तुतिपाठ कर रहे हैं उसी की नक़ल, पींजड़े में बैठा हुआ, वह कर रहा है"।

बन्दीजनों के बालकों के ऐसे मनोहर वचन सुन कर अज-कुमार की नींद खुल गई और उसने इस तरह पलँग को तत्काल दी छोड़ दिया जिस तरह कि उन्मत्त राजहंसोँ के मधुर शब्द सुन कर जागा हुआ सुप्रतीक नामक सुरगज गङ्गा के रेतीले तट को छोड़ देता है।

पलँग से उठ कर उस ललित-लोचन अज कुमार ने, शास्त्र की रीति से,