पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/१२

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भूमिका


राजा या महाराजा के आश्रित ही न थे । वे गुप्तवंशी किसी चिक्र- मादित्य के शासनकाल में थे ज़रूर पर उसका आश्रय उन्हें न था। हाँ, यह हो सकता है कि वे उज्जैन में बहुत दिनों तक रहे हों और उज्जयिनीनरेश से सहायता पाई हो। परन्तु उज्जयिनी के अधीश्वर के वे अधीन न थे। उनका नाटक अभिज्ञान-शाकुन्तल उज्जैन में महाकाल महादेव के किसी उत्सव-विशेप में विक्रमादित्य के सामने खेला गया था। यदि वे राजाश्रित थे तो इस नाटक को उन्होंने अपने आश्रयदाता को क्यों न समर्पण किया ? कालिदास के स्थिति-काल के विषय में, आज तक, भिन्न भिन्न विद्वानों ने भिन्न भिन्न, न मालूम कितने, मत प्रकाशित किये हैं। उनमें से कौन ठीक है, कौन नहीं-इसका निर्णय करना बहुत कठिन है । सम्भव है उनमें से एक भी ठीक न हो । तथापि, दो चार मुख्य मुख्य मतों का उल्लेख करना हम यहाँ पर उचित समझते हैं । सर विलियम जोन्स और डाकर पीटर्सन का मत है कि कालिदास ईसवी सन् के ५७ वर्ष पूर्व उज्जयिनी के नरेश महाराज विक्रमादित्य के सभा-पण्डित थे। पूने के पण्डित नन्दर्गीकर का भी यही मत है और इस मत को उन्होंने बड़ी ही योग्यता और युक्तिपूर्ण कल्पनाओं से दृढ़ किया है। अश्वघोष ईसा की पहली शताब्दी में विद्यमान थे। उनके बुद्धचरित नामक महाकाव्य से अनेक अवतरण देकर नन्दर्गोकर ने यह सिद्ध किया है कि कालिदास के काव्यो को देख कर अश्वघोष ने अपना काव्य बनाया है. क्योंकि उसमें कालिदास के काव्यों के पद ही नहीं, कितने ही श्लोकपाद भी ज्यों के त्यों पाये जाते हैं। डाकर वेषर, लासन, जैकोबी, मानियर विलियम्स और सी० एच० टानी का मत है कि कालिदास ईसा के दूसरे शतक से लेकर चौथे शतक के बीच में विद्यमान थे। उनके काव्य इसके पहले के नहीं हो सकते । उनकी भाषा और उनके वर्णन-विषय आदि से यही बात सिद्ध होती है। वत्सट्टि की रची हुई एक कविता एक शिला पर खुदी हुई प्राप्त हुई है। उसमें मालव-संवत् ५२९, अर्थात् ४७३ ईसवी, अङ्कित है। यह कविता कालिदास की कविता से मिलती जुलती है। अतएव अध्यापक मुग्धानलाचार्य का अनुमान है कि कालिदास ईसा की पांचवीं शताब्दी के कवि हैं । विन्सेंट स्मिथ साहब भी कालिदास को इतना ही पुराना मानते हैं, अधिक नहीं। डाकर भाऊ दाजी ने बहुत कुछ भवति न भवति करने के बाद यह अनुमान किया है कि उज्जैन के अधीश्वर हर्ष विक्रमादित्य के द्वारा