पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/११६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६६
रघुवंश।

बन्धन तोड़ कर भागे। इस कारण, रथों के जुएं टूट गये और वे इधर उधर अस्त-व्यस्त होकर उलटे पलटे जा गिरे। हाथी को आता देख बड़े बड़े योद्धाओं तक के होश उड़ गये; स्त्रियों की रक्षा करने के लिए वे इधर उधर दौड़-धूप करने लगे। सारांश यह कि उस हाथी ने उस उतनी बड़ी सेना को एक पल में बेतरह व्याकुल कर डाला।

शास्त्र की आज्ञा है कि राजा को जङ्गली हाथी न मारना चाहिए। इस बात को अज-कुमार जानता था। अतएव, जब उसने देखा कि यह हाथी मुझ पर आघात करने के लिए दौड़ा चला ही आ रहा है तब उसने धीरे से धनुष को खींच कर सिर्फ़ उसके मस्तक पर इस इरादे से एक बाण मारा कि वह वहीं से लौट जाय, आगे न बढ़े। हाथी राजाओं के बड़े काम आते हैं। इसीसे युद्ध के सिवा और कहीं उन्हें मारना मना है। यहाँ युद्ध तो होता ही न था, इसी से अजकुमार ने उस पर ज़ोर से बाण नहीं मारा। केवल उसे वहाँ से भगा देना चाहा। अज का बाण लगते ही उस प्राणी ने हाथी का रूप छोड़ कर बड़ा ही रमगीय रूप धारण किया। उसे आकाश में निर्विघ्न विचरण करने योग्य शरीर मिल गया। उस समय उसके शरीर के चारों तरफ़ प्रकाशमान प्रभामण्डल उत्पन्न हो गया। उसके बीच में उस सुन्दर शरीर वाले व्योमचारी को खड़ा देख कर रघु की सेना आश्चर्य्य-सागर में डूब गई। इसके अनन्तर उस गगनचर ने अपने सामथ्य से कल्पवृक्ष के फूल ला कर अज पर बरसाये। फिर, अपने दाँतों की चमक से अपने हृदय पर पड़े हुए सफ़ेद मोतियों के हार की शोभा को बढ़ाते हुए उसने, नीचे लिखे अनुसार, वक्तृता आरम्भ की। वक्तृता इस लिए कि वह कोई ऐसा वैसा साधारण बोलने वाला न था, किन्तु बहुत बड़ा वक्ता था। वह बोला:—

"अजकुमार, मैं प्रियदर्शन नाम के गन्धर्व का पुत्र हूँ। मेरा नाम प्रियंवद है। मेरे गर्व को देख कर एक बार मतङ्ग नामक ऋषि मुझ पर बहुत अप्रसन्न हुए। इससे उन्होंने शाप दिया कि जा, तू हाथी हो जा। तेरे सदृश घमंडी को हाथी ही होना चाहिए। शाप दे चुकने पर मैंने मतङ्ग मुनि को नमस्कार किया, उनकी स्तुति भी की और शापमोचन के लिए उनसे नम्रतापूर्वक विनती भी की। इस पर मुनि का क्रोध शान्त हो गया। होना ही चाहिए था। अग्नि के संयोग से ही पानी को उष्णता प्राप्त होती है। यथार्थ में तो शीतलत्व ही पानी का स्वाभाविक धर्म है। मुनियों का स्वभाव भी दयालु और शान्त होता है। क्रोध उन्हें कोई बहुत बड़ा कारण उपस्थित हुए बिना नहीं आता। मेरी प्रार्थना पर तपोनिधि मत मुनि को दया आई और उन्होंने कहा:—'अच्छा, जा, इक्ष्वाकु के वंश में अज नामक एक राजकुमार होगा। वह जब तेरे मस्तक पर लोहे के मुँह वाला बाण मारेगा तब