पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/१०९

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पाँचवाँ सर्ग।

वह आपने अपने ही मन से की है या अपने गुरु की आज्ञा से। वन से इतनी दूर मेरे पास आने का कारण क्या"?

राजा रघु के मिट्टी के पात्र देख कर कौत्स, बिना कहे ही, अच्छी तरह समझ गया था कि यह अपना सर्वस्व दे चुका है; अब इसके पास कौड़ी नहीं। अतएव, यद्यपि राजा ने उसका बहुत ही आदर-सत्कार किया और बड़ी ही उदारता से वह उससे पेश आया, तथापि कौत्स को विश्वास हो गया कि इससे मेरी इच्छा पूर्ण होने की बहुतही कम आशा है। मन ही मन इस प्रकार विचार करके, उसने रघु के प्रश्नों का, नीचे लिखे अनुसार, उत्तर देना प्रारम्भ किया:—

"राजन्! हमारे आश्रम में सब प्रकार कुशल है। किसी तरह की कोई विघ्न-बाधा नहीं। आपके राजा होते, भला, हम लोगों को कभी स्वप्न में भी कष्ट हो सकता है। बीच आकाश में सूर्य्य के रहते, मजाल है जो रात का अन्धकार अपना मुँह दिखाने का हौसला करे। लोगों की दृष्टि का प्रतिबन्ध करने के लिए उसे कदापि साहस नहीं हो सकता। हे महाभाग! पूजनीय पुरुषों का भक्ति-भाव-पूर्वक आदरातिथ्य करना तो आपके कुल की रीतिही है। आपने तो अपनी उस कुल-रीति से भी बढ़ कर मेरा सत्कार किया। पूजनीयों की पूजा करने में आप तो अपने पूर्वजों से भी आगे बढ़े हुए हैं। मैं आप से कुछ याचना करने के लिए आया था, परन्तु याचना का समय नहीं रहा। मैं बहुत देरी से आया। इसी से मुझे दुःख हो रहा है। अपनी सारी सम्पत्ति का दान सत्पात्रों को करके आप, इस समय, खाली हाथ हो रहे हैं। कुछ भी धन-सम्पत्ति आपके पास नहीं। एक मात्र आपका शरीर ही अब अवशिष्ट है। अरण्य-निवासी मुनियों के द्वारा बालें तोड़ ली जाने पर साँवाँ, कोदों आदि तृणा-धान्यों के पौधे जिस तरह धान्य विहीन होकर खड़े रह जाते हैं, उसी तरह आप भी, इस समय, सम्पत्ति-हीन होकर शरीर धारण कर रहे हैं। विश्वजित् यज्ञ करके और उसमें अपना सारा धन ख़र्च करके आपने, पृथ्वी-मण्डल के चक्रवर्ती राजाहोने पर भी, अपने को निर्धन बना डाला है। आपकी यह निर्धनता बुरी नहीं। उसने तो आपकी कीर्त्ति को और भी अधिक उज्ज्वल कर दिया है—उससे तो आपकी शोभा और भी अधिक बढ़ गई है। देवता लोग चन्द्रमा का अमृत जैसे जैसे पीते जाते हैं वैसे ही वैसे उसकी कलाओं का क्षय होता जाता है; और, सम्पूर्ण क्षय हो चुकने पर, फिर, क्रम क्रम से, उन कलाओं की वृद्धि होती है। परन्तु उस वृद्धि की अपेक्षा चन्द्रमा का वह क्षय ही अधिक लुभावना मालूम होता है। आपका साम्पत्तिक क्षय भी उसी तरह आपकी शोभा का बढ़ाने वाला है, घटाने वाला नहीं। हे राजा!

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