क्या कहना। उन्होंने तो अपरिमित धन-सम्पत्ति देकर रघु को प्रसन्न किया। अनमोल रत्नों से अपनी अपनी अँजुलियाँ भर भर कर वे रघु के सामने उपस्थित हुए। उनकी उन भेटों को देखने पर राजा रघु को मालूम हुआ कि हिमालय कितना सम्पत्तिशाली है। साथही, हिमालय को भी मालूम हो गया कि रघु कितना पराक्रमी है। रघु के पहले कोई भी अन्य राजा हिमालय के इन पहाड़ी राजाओं का पराभव न कर सका था। इसीसे किसी को इस बात का पता न था कि इनके पास इतनी सम्पत्ति होगी।
वहाँ पर अपनी अखण्ड कीर्ति स्थापित करके, रावण के द्वारा एक दफ़े स्थानभ्रष्ट किये गये कैलास-पर्व्वत को लज्जित सा करता हुआ, राजा रघु हिमालय-पर्व्वत से नीचे उतर पड़ा। उसने और आगे जाने की आवश्यकताही न समझी। एक दफ़े परास्त किये गये शत्रु के साथ शूर पुरुष फिर युद्ध नहीं करते, और, कैलास का पराभव रावण के हाथ से पहले ही हो चुका था। अतएव, उस पर फिर चढ़ाई करना रघु ने मुनासिब न समझा। यही सोच कर वह हिमालय के ऊपर से ही लौट पड़ा; आगे नहीं बढ़ा।
वहाँ से राजा रघु ने पूर्व्व-दिशा की ओर प्रस्थान किया और लौहित्या (ब्रह्मपुत्रा) नामक नदी को पार करके प्राग्ज्योतिष-देश (आसाम) पर अपनी सेना चढ़ा ले गया। उस देश में कालागुरु के वृक्षों की बहुत अधिकता है। राजा रघु के महावतों ने उन्हीं से अपने हाथियों को बाँध दिया। इससे, हाथियों के झटकों से इधर वे वृक्ष थर्राने लगे, उधर प्राग्ज्योतिष का राजा भी रघु के डर से थर थर काँपने लगा।
राजा रघु के रथों के दौड़ने से इतनी धूल उड़ी कि सूर्य्य छिप गया और आसमान में मेघों का कहीं नामो निशान न होने तथा पानी का एक बूँद तक न गिरने पर भी सर्वत्र अन्धकार छा गया—महा दुर्दिन सा हो गया। यह दशा देख प्राग्ज्योतिष का राजा बेतरह घबरा उठा। वह रघु के रथ-मार्ग की धूल का घटाटोप ही न सह सका, पताका उड़ाती हुई उसकी सेना का धावा उस बेचारे से कैसे सहा जाता?
कामरूप का राजा बड़ा बली था। उसकी सेना में अनेक मतवाले हाथी थे। उनके कारण अब तक वह किसी को कुछ न समझता था। हाथियों की सहायता से वह कितनेहीं राजाओं को परास्त भी कर चुका था। परन्तु इन्द्र से भी अधिक पराक्रमी रघु का मुक़ाबला करने के लिए