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इस अनुवाद के सम्बन्ध में निवेदन।


करनेवाले असंख्य बाण उस डोरी से ही निकलते ले-उससे ही उत्पन्न होते से---- चले जाते हैं।

मतलब यह कि इस अनुवाद में शब्दार्थ पर कम ध्यान दिया गया है, भावार्थ पर अधिक । स्पष्ट शब्दों में कालिदास का आशय समझाने की चेष्टा की गई है; शब्दों का अर्थ लिख देने ही से सन्तोष नहीं किया गया। महाकवियों के प्रयुक्त किसी किसी शब्द में इतना अर्थ भरा रहता है कि उस शब्दार्थ का वाचक हिन्दी शब्द लिख देने ही से उसका ठीक ठीक वोध नहीं होता। उसे स्पष्टतापूर्वक प्रकट करने के लिए कभी कभी एक नहीं, अनेक शब्द लिखने पड़ते हैं। अनुवादक को इस कठिनता का पद पद पर सामना करना पड़ा है। यद्यपि उसे हल करने की उसने यथाशक्ति चेष्टा की है, तथापि यह नहीं कह सकता कि कहाँ तक उसे सफलता हुई है। उसकी सफलता अथवा विफलता का निर्णय इस अनुवाद के विज्ञ पाठक ही कर सकेंगे।


दौलतपुर, डाकखाना भोजपुर, रायबरेली-।}महावीरप्रसाद द्विवेदी। ६अगस्त, १६१२ -